SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ महाराणा साहब का नारमगरे पधारने का आमंत्रण चौविसोजी साहब ने ज्योंही जाकर पूज्यश्री के पधारने की महाराणा साहब को खबर दी । खबर सुनते हि महाराणा साहब बडे हर्षित हुए। उन्होंने चोविसाजी को आज्ञा दी कि आप पूज्यश्री की सेवा में जाकर मेरी ओर से नारेमगरे पधारने को विनंती करो । यह आज्ञा सुनते हि चोविसाजी घोडे पर बैठ कर पूज्य श्री की सेवामें मटूण पहुंचे और महाराणा साहब की विनंती चरणों में व्यक्त की। चोविसाजी ने पूज्जश्री से अर्ज कि की आप नारेमगरे ललितबाग में पधारें । आप जिस दिन नारेमगरे पधारेंगे उस दिन सारी मेवाड रियासत में जीवहिंसा बंध रखी जावेगी । अगता पाला जायेगा । महाराणा साहब भी ललितबाग में आपके दर्शन करने की अभिलाषा रखतें हैं । महाराणा साहब की प्रार्थना को पूज्यश्री ने स्वीकार करली । चोविसाजी ने इसकी सूचना महाराणा साहब को दे दी। इधर पूज्यश्री मटूण से बिहार कर देबारी होते हुए डबोक गांव पधारे । वहाँ पुनः पूज्यश्री को लेने के लिए चोविसाजी साहब पधारे। उदयपुर से पूज्यश्री के परम भक्त सुश्रावक मास्टर शोभालालजो महेता दौलतसिंहजी लोढा व रतलाम के नन्दलालजी बाफणा भी माश में थे । पूज्यश्री यहां से चौविसाजी के साथ अपने शिष्यो सहित नारमगरे की ओर बिहार कर दिया । दो हि मील दूर रहने पर चोविसाजी साहब आगे जाकर पूज्यश्री के शुभ पदार्पण की खबर दी। जिनको सुनकर महाराणा साहब एवं अन्य सामन्त वर्ग बडा हर्षित हुआ महाराणा साहब एवं पूज्यश्री-- ललितबाग से अन्य सामन्तवर्ग के साथ कालूलालजी सा० कोठारी आदि को सामने पूज्यश्री को लेने के लिये भेजे गये । पूज्यश्री अपनी उसी गजहस्ति की चाल से धीरे धीरे बिहार करते हुए ललितबाग में पधारे । महाराणा साहब पहले ही से फर्श आदि को छोडकर मुनियों के बेठने योग्य स्थान पर बिराजे हुए थे। पज्यश्री के पधारते ही सर्व समान्त वर्ग ने व महाराणा साहब ने योग्य सत्कार किया । पश्चात् पूज्यश्री अपने शिष्यों द्वारा लाये गये पाट पर जा बिराजे । विश्राम के बाद श्रीमान् महाराणा साहब ने मार्ग के परिश्रम के लिए पूछा । पुनः यहां पर एक दो रोज बिराजने की एवं उदयपुर पधारने की तथा चातुर्मास आदि के बारे में पूछताछ की । बाद में उनके प्रश्नो का यथा योग्य समाधान कर अपना मांगलिक प्रवचन प्रारंभ किया ॐकारं बिन्दुसंयुक्त नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव ॐ काराय नमो नमः ॥ महाराणा साहब सामन्त वर्ग एवं उपस्थित श्रोतागण महाराणा साहब कि एवं आपलोगों की दिव्य भक्ति ने मुझे यहाँ तक खींच लाया है । मानव जीवन की सफलता भक्ति और प्रेम में ही है । प्रत्येक मन को ईश्वर की भक्ति करनी चाहिये । ईश्वर भजन आत्मधन है । पौद्गलिक धन से आत्मधन पर हमको अधिक विश्वास होना चाहिये । क्योंकि पौद्गलिक पदार्थ का संसार में जितना अधिक विश्वास है उससे भी नाटा मुनियों का एवं विचक्षण पुरुषों का आत्मधन पर विश्वास है । जो व्यक्ति प्रातः नित्य थोडी देर भी ईश्वर करता हैं वह महान निधि पाने का उपाय करता है । अमृत संसार में अगर थोडा भी हो तो काफी है । उसी अमृत द्वारा हजारों का पालन हो सकता है । बहुमूल्य चीजें दुनियाँ में थोडी ही रहा करती हैं । सुवर्ण और लोहा दोनो की तुलना करने से स्वयं ज्ञात हो जायगा । अस्तु । इसी प्रकार मनुष्य सुबह के समय जो ईश्वर भजा करता हो वह आत्मधन की अखूट स्वर्णसिद्धि प्राप्त करता है । ईश्वर भजन में बड़ी ताकत है । उस ताकत को प्राप्त करने का साहस है वह के तो योगियों में या आप जैसे नरवीरों में । क्यों सामाणिक दवाईयाँ प्रत्येक व्यक्ति पवा नहीं सकता । उसके लिए धेय शक्ति और पथ्य की आवष्यसा । उसी प्रकार ईश्वर भजन रूप रासायनिक पदार्थ का सेवन त्याग हिम्मत और सदाचार रुप ग्थ्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy