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________________ ३६. की ओर से ता० १७-१२-४१ को अगते के साथ सरकारी स्कूल के विशाल प्रांगन में ॐ शान्ति की प्रार्थना का हुक्म जाहिर किया । हुक्म सुनकर यहाँ के निवासी जैन अजैन सर्व जन समूह आश्चर्य चकित हो उठां कारण सलूम्बर के लिए यह प्रसंग नया था । यहाँ के निवासी स्थानकवासी जैन मुनियों से एवं उनके आचार विचार से पूर्ण अनभिज्ञ थे । स्कूल में ॐ शान्ति की प्रार्थना ता० १७-१२-४१ को सरकारी स्कूल के विशाल चौगान में आम जनता को बैठने का सरकारी इंतजाम हो चुका था। बिछोना आदि की व्यवस्था होगई थी। ता०१६-को कोतवालो की तरफ से शाम को ता० १७ के रोज अगता पालने का एवं ॐ शान्ति प्रार्थना में शामिल होने का एलान सारे नगर में होंडी द्वारा करा दिया गया । जिससे सर्व जैन अजैन जन समह यथासमय शान्ति प्रार्थना में शामिल होने के लिए हजारों की संख्या में एकत्रित हए। जनता के आजाने पर पहले सरकारी स्कल के छात्रोंने एवं वीर पुत्र समीरमुनिजी ने मंगलाचरण किया । पश्चात पूज्यश्री ने अपनी अमृत मय वाणी द्वारा ईश्वर का स्वरूप समझाया । आपने अपने प्रवचन में कहा ईश्वर के स्वरूप कि प्राप्ति त्याग से होती है । न कि महामाया से ? सा के स्थान पर कभी भी ईश्वर का अस्तित्व नहीं रहतो है । इस प्रकार आपका दो घंटे तक भाषण हुआ जिसको सुनकर जनता खूब हर्षित हुई । समय नहीं था किन्तु जनता कि यह प्रार्थना थी कि पूज्यश्री अपना प्रवचन ओर भी कुछ समय के लिए चालु रखें तो अच्छा | व्याख्यान समाप्ति के बाद लोगों ने खडे होकर पूज्यश्री को ओर भी कुछ दिनों के लिए बिराजने का आग्रह किया और कहा आप जैसे चारित्रवान सन्तों का यहाँ कभी पदार्पण नहीं होता । इधर की जनता आपके धर्म से सर्वथा अपरिचित है। आपके यहाँ पर बिराजने से धर्म का अच्छा प्रचार होगा। वर्षो से हम लोग मार्ग भूले हुवे हैं । आपके बिराजने से फिर हम लोग आपके सिद्धान्त के अनुगामी बन सकते हैं। आपका यहाँ बिराजना सर्वके लिए अत्यन्त लोभदाई है । कामदार साहब एवं मजिस्ट्रेट साहब ने फरमाया कि व्यापार के कारण दिन में कुछ लोग आपके प्रवचनों से वंचित रह जाते हैं । अतः रात्रि के समय राजमहल के प्रांगण में आपके प्रवचन होतो बडा लाभ होगा। बड़ी संख्या में लोग आपका धर्मोपदेश सुन सकेंगे । जनता के आग्रह को ध्यान में रखकर पूज्यश्री एक दो दिन अधिक बिराजगऐ । इधर पूज्यश्री कहाँ है जिसकी खबर उदयपुर की जनताको नहीं मिलती थी। कारण इस प्रान्त में डाक तारऑफिस का साधन नहीं होने से खबर नहीं मिल सकती थी । महाराणा सहाब का मुकाम जयसमुद्र था तब पूज्यश्री बांसवाडे में हि बिराज रहे थे । दरबार ने बांसवाडा सरहद में दो ऊँट सवार भेजकर खबर मंगाई कि पूज्यश्री कहाँ तक पधारे हैं ? किन्तु पूज्यश्री कहाँ तक पधारे हैं इसके समाचार उन्हे नहीं मिल सके । हां पूज्यश्री शीघ्र ही बिहार करके पधार रहे हैं । इसकी सूचना महाराणा साहब को जयसमुद्र पर मिली । अब यह आशंका थी कि उदयपुर आने के दो मार्ग हैं एक तो जयसमुद्र और दूसरा बंबोग। पूज्यश्री किस मार्ग से पधारेंगे यह अनिश्चित था इस कारण दरबार उदय निवास होकर नाहर मगरे पधारे और ईधर पूज्यश्री सलूम्बर से बिहार कर जयसमुद्र पधारे । जयसमुद्र मेवाड का सबसे बडा तालाब है। इसको महाराणा साहब श्री जयसिंहजी ने बनवाया थो । इसके बाद गुजरात निवासियों की प्रार्थना पर इसकी पुनः मरम्मत की गई जिसका खर्च करीब एक लाख रुपया आया है। इसकी पाल बडी संगीन है। पालपर ऊंची टेकरी पर हवा महल रूठीराणी का महल बडो सुन्दर गेस्ट हाउस आदि अनेक सुरमणीय स्थान हैं तालाव के चोरों ओर ऊँची ऊँची पहाडियाँ है पास ही वीरपुर गांव के बाहर कचहरी बनी हुई है । इस समय कन्हैयालालजी नाहर डिप्टी कलेक्टर है कलेक्टर साहब बडे हि अच्छे स्नेही व्यक्ति है । यहाँ पूज्यश्री एक दिन बिराजे थे । दूसरे दिन पूज्यश्री ने बि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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