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________________ ३३२ के साथ फरमाते थे । पर्व के दिनों में अपूर्व धर्म ध्यान हुआ । महान तपश्चर्या-तपस्वीश्री मदनलालजी महाराज ने ता० ७-७ ४० को छाछ के आगार से ७० दिन की महान तपश्चर्या के पूर के दिन समस्त रतलाम स्टेट में अगता रखा गया था। जिससे हजारो प्राणियों को अभयदान मिला। सैकडों गांवों के लोग तपस्वीजी के दर्शन के लिए आये । तपश्चर्या की पूर्णाहुति की सूचना पत्र पत्रिकाओं द्वारा सर्वत्र दी गई। परिणाम स्वरूप बाहर के गांव वालों ने भी उस दिन जीवहिंसा बंध रख कर धर्मध्यान किया । बाहर से जिन लोगों ने उस दिन उपकार के कार्य किये उसका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है- कोटडी बन्दर सिन्ध से श्रीमान् ठाकरसी रामजो भाई पत्र द्वारा सूचित करते हैं आपकी तरफ से तपश्चर्या की पत्रिका मिली । तपस्वी श्री मदनलालजी महाराज की आज्ञानुसार यहां सिन्धू नदी के किनारे तपस्या की पूर की खुशी में मच्छि आदि जानवरों की शिकार करना बन्ध रखा गया है । मैने अपनी ओर से निज व्यवस्था की थी । कार्यवशात् दर्शनों के लिए नहीं आ सका सो क्षमा चाहता हुँ । इसी तरह वास भौमट ( मेवाड ) से श्रीमान् जडावचंदजी संघवी लिखते हैं तपश्चर्या की पत्रिका मिली। तपस्वीश्री मदनलालजी म० के ७० उपवास के पूर पर निम्न जगह भादवा सुद १३ १४ १५ तीन दिन अगते पाले गये । और धर्मध्यान में समय व्यतीत किया । श्रीमान पानरवा राणाजी श्री मोहब्बतसिंहजी साहब ने अपनी रियासत के बारहसौ गांवों में तथा मेह रपुर के रावजी साहब श्रीशिवसिंहजी साहब ने अपनी रियासत के नवसौ गांवों में और ओगनारावजी श्री करणसिंहजो अपनी समस्स रियासत में आपकी आज्ञानुसार अगते पलवाये गये और उस दिन जीवहिंसा बंद रखकर ॐ शान्ति की प्रार्थना करवाई । हमारे यहा भाद्रपद शुक्ला १३ को आश्चर्यकारी घटना यह हुई कि यहाँ पर अम्बामाता के स्थान पर तीन बकरों की बली चढनेवाली थी । बकरे मरने को तैयारी में थे कि उसी समय अंबिका माता के भील भोपा ने भाव में आकर कहा कि रतलाम से तपस्वी महात्मा ने जीवहिंसा बन्द करने का हुक्म फरमाया हैं सो यहां जीवहिंसा नहीं होगी । पहले भी आपकी आज्ञानुसार स्थानीय श्रावकों के सुप्रयत्न से पाडा मारना बन्द करवाया था सो वह अब भी बन्द ही है। रतलाम नरेश का उपदेश श्रवण __ सा० २-८-४० मो श्रीस्थानकवासी जैनसंघ की तरफ से गये हुए डेप्यूटेशन की अर्ज को स्वीकार करके रतलाम नरेश उनके राजकुमार व राज्य के मुख्य मुख्य कर्मचारी गण पूज्यश्री के व्याख्यान में पधारे। करोब १।। घंटे तक पूज्यश्री का मानवधर्म पर प्रवचन हुआ। प्रवचन सुन कर महाराजा बडे प्रसन्न हुए प्रवचन में करीब ८ ९ हजार जनता उपस्थित थी । इतना विशाल जनसमूह के एकत्र होने के तीन कारण थे । एक पूज्यश्री के प्रवचन पीयूष का पान करने को अति अभिलाशा दुसरी महानतपस्वीजी के पुण्य दर्शन व तीसरा रतलाम नरेश का पूज्यश्री के दर्शन के लिए आना । इस प्रकार त्रिवेणी संगम का पुण्यअवसर रतलाम के लिए प्रथम था। चातुर्मास काल में आशातीत धम ध्यान हुआ । त्याग-प्रत्याख्यान उपवास आदि मासखमन तक की तपश्चर्या तथा सामायिके पौषध आदि धर्माराधन बहुत हुआ। प्रतिदिन प्रातः प्रवचनों में तथा सायंकाल प्रतिक्रमण के अनन्तर होने वाली तात्विक चर्चा में पूज्यश्री धर्म के यथार्थ चिन्तन-मनन और वस्तु स्वरूप का विवेचन करते थे । चातुर्मास समाप्ति और बिहार ___आपश्री ने चातुर्मास की समाप्ति पर आपने अंतिम प्रवचन में सभी को धार्मिक प्रेरणा दी । प्रवचन समाप्ति के बाद आपका बिहार हुआ। बिहार के अवसर पर विदाई के लिए विविध क्षेत्रों के आबालवृद्ध जन उपस्थित थे । ऐसे समय में स्थानीय जनसमूह की भावोर्मियां अनुभूति गम्य थी और भरे मन से श्रद्धेय पूज्यश्री को बिहार के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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