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प्रात ता ७ मई को महाराजश्री ने मुनिमण्डल के साथ ७ सात मील पर वारातु पधारे । यहां स्टेशन पर जैनों के करीब बीस घर थे । प्रायः तेरहपन्थी अधिक थे । बडे बाबूजी श्रीमान् श्यामलालजी कायस्थ ब्राह्मण थे । और छोटे स्टेशन मास्टर जोधपुर के पुष्करणे ब्राह्मण जिनका नाम बन्सीधरजी बोहरा था और कष्टम थानेदार गंगादासजी कायस्थ इन सबने महाराज श्री की वडी अच्छी सेवा की । महाराजश्री को ठह राने के लिए अपना निजी क्वार्टर खोल दिया। दुपहर में स्टेशन हाल में व्याख्यान हुआ। श्रीमान् माहेश्वरो केवलरामजी इटावरी ने एकादशी को रात्रि भोजन का त्याग लिया। तथा अनेक भाईयों ने भी उपदेश श्रवण कर यथा शक्ति त्याग प्रत्याख्यान ग्रहण किये । शाम को महाराज श्री ने बिहार कर दिया श्रीमान् दीपचन्दजी सालेचा ओसवाल प्रेमचन्दजी गुणधर लोपडा तथा मिश्रीमलजो लुंकड आदि अनेक भाई दूर तक महाराज श्री को पहुंचाने के लिए आये । रात को जंगल में वृक्ष के निचे रहे । करीब डेढ बजे के बाद तीन चोर आये वस्त्रादि चुराने के लिए वृक्षों की ओटमें छुप छुप तीन बार चोरी का प्रयत्न किया मगर सब सन्तों को सजाग देखकर वे लोग आने काम में सफल न हो सके । स्वयं सेवको के पास भी चोरों ने चोरी का प्रयत्न किया लेकिन सन्तों के व धर्म के प्रभाव से चार चोरी किये विना ही चुपचाप वापिस चल दिये। लेकिन एक चोर महाराजश्री को मोका पाकर लूटने की नियत से साथ साथ में हो गया । दूसरे दिन ता० ८ मई को विहार कर सात मील पर वाणियाँ सिंधाधोरा पधारे । यहाँ एक जमाने में डाकू लोग खूब लूट पाट करते थे। यहाँ एक कुमारी बारात को मार डाली थी जिसमें एक प्रतिष्ठित बनियां भी काम में आ गया था । ईससे इसका नाम 'वाणियासिंधाधोरा' पड गया । उस बनिये की चिता स्थल पर चबूतरा बना हुआ है । यहां इसके नाम पर मेला भी लगता है । यह स्टेशन बडे बडे रेतीले टिम्बों के बीच वसा हुआ है । यहाँ के स्टेशन मास्टर रामनाथजी जोधावत पुष्करणे ब्राह्मण होते हुए भी आपने अच्छी श्रद्धा का परिचय दिया । आपके माताजो ने भी अच्छी सेवा को । स्टेशन मास्टरने महाराज श्री के वैराग्यमय उपदेश से एकादशी के दिन निराहार उपवास करने का प्रण किया। तथा इनकी मां साहब मोंघीबाई ने अमावस्या को लीलोती का एवं कन्दमूल कोला आदि खाने का त्याग किया। जमादार चौधरी नानगाजी लक्षमणाजी खेताजी उदाजी ने सांप बिच्छु आदि प्राणियों को मारने का त्याग किया । तथा एकादशी अमावस्या को हल जोतने का त्याग किया । स्टेशन के महतर पूसा ने दारु मांस एवं जीव हिंसा का त्याग किया ।
प्रातः ता० ९ मई को छ मील विहार कर महाराजश्री कवास पधारे । यहां स्टेशन पर बाइस संप्र दाय के श्रावकों के १० घर थे इनमें कुछ तेरह पन्थियों के भी घर थे श्रीमान् मिश्रीलालजी साहब के मकान में ठहरे । आप धर्म के पूरे लाग वाले हैं। यहां पर बाडमेर से सात आठ श्रावक महाराज श्री के दर्शन के लिये आये जिनमें श्रीमान् गणेशमलजी किसनाजी वर्ष में पाँच पांच बकरा अमर करने का प्रण लिया । जागीदार श्रीमान् चमनसिंहजी वास ढुंढावालों ने दारु मांस का त्याग किया तथा शिकार करने का त्याग किया । और प्रतिवर्ष एक एक करा अमर करने की प्रतिज्ञा ग्रहण को। तेली चान्दों अनदाणी स्टेशन कवासवाले ने अपने हाथ से मांस लाने व खाने का तथा जीवघात करने और खेत में ओधा (घास फूस इकट्ठा कर आग लगाने का त्याग किया । तथा पूर्णिमा के रोज घानी पीलने का सौगन्न किया । माली भूरों रुघनाथाणी ने एकादशी अमावस्या को हल खेडने का सोगन्न किया । केशरीमलजी परता बानी प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमर करने का प्रण लिया । श्रीमान सेठ मिश्रीमलजी अमेदानी ने प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमर करने का तथा प्रतिमाश पद्रह सामायिक करने का प्रण लिया समेरा टिलानी बोहरे ने नवकारवाली फेरने का प्रण लिया । रुपा मेघवाल ने दारु मांस का तथा किसी प्रकार की जीवहिंसा नहीं
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