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(१) अपने हाथ से किसी प्राणी को नहीं मारूंगा । ( २ ) आजीवन मांस नहीं खाऊंगा । (३) आजीवन शराब नहीं पीऊंगा । ( ४ ) रात्री भोजन नही करूंगा । ( ५ ) आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत पालूंगा । (६) तपस्वीजी के नाम पर प्रतिवर्ष एक एक बकरा अमर करूंगा । ( ७ ) मूल । केला एवं वेंगन को आजीवन खाने का त्याग । इस प्रकार महाराज श्री अलाय विराजने से बडा धर्मोपकार हुआ। मास्टर सा० श्री झुमरलालजी, श्रीमान् लालचन्दजी, सुमनराजजी आदि ने धर्मदलाली खूप अच्छी की और जैन शासन की प्रभावना बढाने में आपने पूर्ण सहयोग दिया। स्थानीय श्रावकों ने भी अच्छी मात्रा में त्याग प्रत्या ख्यान ग्रहण किये । कुछ दिन अलाय विराजकर महाराजश्री का विहार नागौर की तरफ : हुआ । मध्यवर्ती क्षेत्र को पावन करते हुए आप अपने मुनिवृन्द के साथ नागौर पधारे । और यहां पंचायती नोहरे में ठहरे ।
महाराजश्री के कुचेरा के आदर्श चातुर्मास का सारे राजस्थान प्रान्त पर बहुत अधिक प्रभाव पडा । पूज्यश्री जवाहरलालजी महाराज से पृथकू होने पर आपको अनेक विध कठिनाईयों का सामना करना पड रहा था । कुछ आलोचक व्यक्ति समय समय पर आपकी निरर्थक आलोचना कर अपनी उद्दण्डता का परिचय दे रहे थे । महाराजश्री के आगाध सिद्धान्त ज्ञान, द्रव्य, क्षेत्र काल भाव को परखने का अद्भुत कौशल, चमत्कार पूर्ण वक्तृत्व शैली, एवं उच्चकोटि के तपस्वी सन्तों के पूर्ण सहयोग के कारण आपका प्रभाव इतना अधिक पड़ रहा था कि विरोधियों की समस्त हरकते धीरे धीरे अस्ताचल की ओर जाने लगी । जो निन्दक थे वे भी आपके प्रशंसक बन गये। जिस समय आप नागौर बिराज रहे थे उस समय जोधपुर, जयपुर, ब्यावर उदयपुर एवं आस के नगरों के लोग आगामी चातुर्मास की विनतियों लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हुए । नागौर संघने भी आगामी चातुर्मास की प्रार्थना की
इसी अवसर पर कराची संघ की ओर से श्रीयुत् सेठ कानजीभाई झुंझाभाई आगामी चातुर्मास के लिए कराची की ओर पधारने की प्रार्थना करने आये । साथ में समस्त श्री संघ के हस्ताक्षरों से युक्त एक विनती पत्र भी भाव वाहक लाये थे । कराची पधारने कि विनती की। कराची संघ की विनती पर महाराजश्री ने कहा कि - इस समय तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज के आखों की कारी हुई है । और कराची शहर बहुत दूर है । इसलिए सन्तों की सलाह के बिना क्या कहा जाय । किन्तु कानजीभाई तो कराची श्री संघ का जोसिला विनती पत्र होने से डट कर बैठ गये । और कहने लगे कि आप तो मुनिराज हो और मुनि परिषह जीतने में शूर-वीर होते हैं । आप तो परोपकारी हो अतः हमारे श्री संघ की विनती स्वीकार करनी ही पडेगी । यदि आप मेरे अकेले की विनती स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं तार देकर कराचीवालों जो हवाई जहाज से बुलाउमा फिर तो आपको विनती माननी ही पडेगी । हमारा कराची संघ जिन वाणी रूप अमृत का बडा पिपासु है । और सिन्ध में जैन धर्म का प्रचार कराने तथा भोले प्राणियों को दारु, मांस हिंसा आदि दुष्कर्मो से बचाने के लिए अत्यन्त उत्कण्ठित है । आपके सहयोग के बिना हमारा यह गुरुतर कार्य सफल नहीं हो सकता | आपके पधारने से सिंध देश में जैनधर्म का प्रचार होगा और जिन शासन की प्रभावना बढेगी । जैन धर्मोपदेष्टा पण्डित मुनिश्री फूलचन्द्रजी महाराज ने हमारे क्षेत्र में जिस धर्म वृक्ष को बोया है उसे सिंचित कर पल्लवित पुष्पित और फलान्वित करना आपका कार्य है । उस समय चातुर्मास की विनती के लिए अजमेर, जयपुर, अलवर, दिल्ली तथा स्वयं नागौर का संघ उपस्थित था । किन्तु महाराजश्री ने कराची संघ की तीव्र भावना और महान् उपकार को ध्यान में रखकर कराची संघ की विनती स्वीकार करली | उस अवसर पर पं मूलचन्दजी व्यास को बाडमेर तक महाराजश्री की सेवा में रहना यह निश्चित कर कराची चले गये । कुचेरा से नागौर तक के विहार में अनेक
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