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________________ २२३ को पूर्ण अरने की विनंती की । श्रावकों की विनती मानकर आप कुछ दिन बगीची में ही विराजे और टीका लिखते रहै । कुछ दिन बिराजकर आपने वहां से भोमट प्रान्त की ओर विहार किया । विहार करते हुए आप मादडा और ओगणा पधारे, मादडा ठाकुर साहब रतनसिंहजी, ओगना राबजी श्री कुबेरसिंहजी परावली के टाकुर साहेब श्री तखतसिंहजी ने आपका उपदेश सुना । और अहिंसा के पट्टे लिख दिये । गरमी का मौसम होने से उदयपुर जैनज्ञान पाठ शाला के विद्यार्थियों को लेकर परमतत्वज्ञ श्रीमान् रतनलालजी मेहता महाराज श्री के दर्शनार्थ आये । दर्शन व्याख्यान का श्रवण, आरावली पहाडों की प्राकृतिक सुन्दरता का रमणीय दृश्य, तथा छोटे छोटे गांवों के जैनोद्वारा प्रेम भरा आतिथ्यसत्कार को पाकर ज्ञानपाठशाला के विद्यार्थी बडे प्रशन्न हुए । महाराज श्री ने भोमटसे जसवन्तगढ की ओर विहार किया तो श्री ज्ञान पाठशाला के छात्र एवं शिक्षक श्री रतनाललजी मेहता महाराज श्री के साथ हो गये। मार्ग में सूर्य अस्त होने से डाक् हिरला डायला के निवास स्थान के नजदीक ही जंगल में एक वृक्ष के नीचे आपने निवास किया। जिस जंगल में दिन के समय प्राकृतिक सुन्दरता के कारण विद्यार्थी प्रसन्नता का अनुभव कर रहे थे वे ही विद्यार्थी रात्रि के समय और डाकूओं के निवास के समीप निवास करते हुए भय का अनुभव करने लगे। विद्यार्थीयों को भय भीत देखकर महाराज ने उन्हे भयमुक्त किया और अपने पास ही में उन्हे सुलाया । महाराज श्री ने रात्रि में बच्चों की ओर पूरा ध्यान दिया । बच्चे भी महाराज श्री के आश्वासन से निर्भिक रूप से सोगये । प्रातः हुआ और महाराज श्री जसवन्त गढ की और विहार कर दिया । १९८८ का चातुर्मास पुनः उदयपुरमें दीर्घ तपस्या एवं वृद्धावस्था के कारन तस्वो श्री सुन्दरलाल जी महाराज मार्ग में ही अस्वस्थ हो गये। विहार करना उनके लिये अशक्यसा हो गया, तपस्वोजी श्री सुन्दरलालजी महाराज की चिकित्सा के लिए आपको पुनः उदयपुर पधारना पडा । तपस्वीजी ने स्वास्थ्य लाभ तो प्राप्त किया किन्तु शरीर इतना दुर्बल हो गया था कि आप अन्यत्र विहार नहीं करसके । अतः पूज्य आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज की आज्ञा से एवं श्रावकों की प्रार्थना पर आपने इस वर्ष का चातुर्मास उदयपुर में ही करने का विचार किया । चतुर्मास का समय आने पर आप चतुर्मासार्थ पंचायती नोहरे में ठहरे, पञ्चायती नोहरे में आपके प्रभावशाली प्रवचन होने लगे। व्याख्यान में राजसभा के मेम्बर, चीफ सेक्रेटरी रामगोपालजी, देवस्थान हाकिम श्री जगन्नाथसिंहजी मेहता. श्री भीमसिंहजी मेहता श्री कन्हैयालालजी चोवीसा. आदि राजकीय अधिकारी गाव के प्रतिष्ठित नागरिक आदि बडी संख्या में प्रवचन के लिए आने लगे । शारीरिक दुर्बलता होते हुए भी तपस्वी श्री सुन्दरलालजी महाराज ने तपश्चर्या प्रारंभ कर दी । तपश्चर्या के समाचार महाराणा साहेबश्री भूपालसिंहजी तक श्री चोबिसाजी पहुंचाया करते थे । तपस्या की पूर्णाहुति के दिन समस्त मेवाड राज्य में अगता पाला गया । उस दिन आपका जाहिर प्रवचन हुआ इस प्रवचन में कालेज तथा स्कूलों के विद्यार्थी राज्यकर्मचारी राजवंशीय एवं इतर सज्जन बडी संख्या में उपस्थित हो कर रूचि पूर्वक व्याख्या न का श्रवण किया। सैकड़ों व्यक्तियों ने त्याग प्रत्याख्यान ग्रहण किया । इस चातुर्मास में महाराणा भूपालसिंहजी ने आपके कई बार दर्शन किये और प्रवचन सुने । आपके उपदेशों से बहुत से लोगों ने पुरानी अदावतों छोडी, बीडी सिगरेट शराब, मांस आदि हानिकार पदार्थों के सेवन का त्याग किया । और अनेक प्रकार के अत्याचारों का त्याग किया। इस प्रकार पं. श्री के उदात्त चरित्र तथा तेजस्वी व्यक्तित्व और प्रभावशाली वक्तृत्व से इस नगर में असीम उपकार हुआ। आपके चातुर्मास में बहुत चहल पहल रही । महाराज श्री के दर्शन करने प्रतिदिन बाहर के गांवों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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