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________________ २२२ लासलगांव के स्थानक में बिराजकर चातुर्मास काल में पं. मुनि श्री कन्हैयालालजी महाराज ने अपने मृदुस्वाभाव, व उपदेश तथा पवित्रजीवन द्वारा वहां के निवासियों को किस प्रकार संतुष्ट एवं प्रभावित किया, लोगों की धार्मिक श्रद्धा को दृढतर बनाने में उनका सांनिध्य किस प्रकार उपयोगी रहा इन सब का विवरण हम दे चुके हैं। दिन के बाद दिन आते रहते हैं और चातुर्मास के चार मास ऐसे बीत गये मानो कल चतुर्मास प्रारम्भ हुआ था । यह अनुभव हो नहीं हुआ कि चारमास का समय कब और कैसे बीत गया। चातुर्मास काल समाप्त हुआ और बिहार का दिवस आया मार्गशिर्षकृष्णाप्रतिपदा इस दिन जिधर भी देखो उधर अपार मानव मेदनी हि मानव मेदनी दृष्टि गोचर होती थी । किन्तु सब के मुख पर उदासीनता झलक रही थी। विदाइ का दृश्य बडा हो भावपूर्ण था । सबके हृदय महाराजश्री की विदाइ से दुखी थे । महाराजश्री तो निर्मोही थे । उन्होंने तो झट कमर बान्धी और अन्य ग्राम के लिए चल पडे । उनके पीछे जयघोष करती हुइ हजारों की जनता थी। ग्राम के बाहर महाराज श्री ने मांगलिक सुनाया । सब अपने २ घर की ओर लौटे । महाराज श्री ने अन्यत्र विहार कर दिया । महाराष्ट्र प्रान्त को अपने पूनीत चरण कमलों से पावन करते हुए क्रमशः २०२३ को होलनान्था २०२४ को शाहदा, २०२५ में पाचोरा एवं २०२६ में दोंडाईचा नामके क्षेत्रों में चतुर्मास किये ।। इधर परमपूज्य आचार्य प्रवर श्री घासीलालजी महाराज सा. वृद्धावस्था के कारण अत्यधिक अस्वस्थ रहने लगे। सेवा में रहने वाले तपस्वीजी श्री मदनलालजी महाराज भो अस्वस्थ रहने लगे । इधर आचार्य श्री की भी यही इच्छा थी कि पंडित मुनि श्री कन्हैयालालजी म. यथा शीघ्र सेवा में आजय तो अच्छा । इसके लिये सरसपूर संघ ने विनंति रुप तार-और पत्र भी महाराजश्री को दिये । कुछ श्रावक भी महाराज श्री की सेवा में पहुंचे और परिस्थिति समझाई । श्रीमान् सेठ पोपटलाल मावजी महेता जामजोधपुर वाले तथा श्रीमान् मूलचन्दजी सा० बरडिया जो महाराज श्री के अनन्य उपासक है । उनके भी समाचार महाराज के पास पहुँचे । परिस्थिति की गम्भीरता पूर्वक विचार कर आपने तुरत गुरुदेव की सेवा में पहुंचने के लिए महाराष्ट्र से अहमदाबाद की ओर विहार किया । उग्र विहार कर आप १४दिन में ही अहमदाबाद गुरुदेव की सेवा में पहुंच गये । आपके आगमन से गुरुदेव को एवं स्थानीय जनता को बडी प्रसन्नता हुई। आप गुरुदेव की सेवा में रहें और उनकी अन्तिम क्षण तक बडे मनो योग से सेवा करते रहे । आपके आगमन से शास्त्रप्रकाशन के कार्य में पुनः जीवन आगया । आज गुरुदेव नहीं किन्तु उनके अधूरे कार्य को पूरा करने में जो आप प्रयत्न शील है उसका विवरण पूज्य श्री के जीवन के अगले प्रकरण में पढ़ें। ___ पूज्य श्री का वि० सं. १९८७ का उदयपुर का चातुर्मास बडी सफलता के साथ समाप्त हुआ । चतुर्मास समाप्ति का विहार जब हुआ तब का दृश्य बडा दर्शनीय था । आपको विदाई देने के लिए हजारों का जन समूह एकत्र हुआ । आपने उदयपुर से विहार कर दिया, बडा बजार, घंटा घर, जगदीश चौक, गुलाबबाग, होते हुए आप श्री जगन्नाथसिंहजी महता के बगीची में पधारे । यहां हजारों व्यक्तियों ने जयघोष के साथ आपका मांगलिक श्रवण किया । दूसरे दिन वहां से विहार कर आयड कोठारीजी की बगीची में पधारे वहां उदयपुर संघ ने साधर्मि वात्सल्य के रूप में सामूहिक भोजन का आयोजन किया । हजारों लोगों ने इस में भाग लिया। महाराज श्री का प्रवचन भी हुआ । उदयपुर श्रीसंघ ने मुनि श्री को उपासकदशाङ्गसूत्र की अधूरी संस्कृत टीका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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