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________________ अवश्य ही सुधर जाएगा । पूज्य श्री के स्वास्थ्य के लिए हमें प्रतिदिन आयंबिल और तेले की तपश्चर्या प्रारंभ कर देनी चाहिये । जो मुनि उम्र से छोटे हैं उनको छोडकर सभी को बारी बारी से तेला और आयंबिल करना होगा। और सामुहिक प्रार्थना भी । मेरा विश्वास है कि इस प्रकार की तपश्चर्या एवं सामुहिक प्रार्थना से पूज्यश्री को इतनी शक्ति प्राप्त होगी कि पूज्यश्री संवत्सरी के दिन अवश्य व्याख्यान देने की शक्ति प्राप्त करेंगे। सभी मुनिवरों को पंडित श्री घासीलालजी महाराज का यह उत्तम सुझाव पसन्द आया । सभी ने बारी बारी से तैले की तपश्चर्या और आयंबिल प्रारंभ कर दिये । इधर डॉक्टरोंने भी चिकित्सा प्रारम्भ .. कर दी। साथ ही पं० मुनि श्री ने डॉक्टरों से यह भी कह दिया कि पूज्यश्री की आपलोग धैर्यपूर्वक चिकित्सा करें किन्तु उनके स्वास्थ्य के विषय में उनके सामने किसी भी प्रकार का र्वातालाप न करे । . डॉक्टरों ने भी इस सुझाव को मान लिया। एसा वातावरण बना दिया गया कि पूज्यश्री अब मानसिक स्वस्थ्यता का अनुभव करने लगे। परिणाम यह आया कि पूज्य श्री का स्वास्थ्य उत्तरोत्तर सुधरने लगा । जिन्हें बोलने की भों शक्ति नहीं थी वे अब संवत्सरी के शुभअवसरपर दोघंटे तक सुन्दर प्रवचन देते रहे । फिर भी समय भयंकर स्थिति उत्पन्न कर सकता था। अपनी एसी अस्वस्थता देखकर पूज्यश्री को संघ के भावी की चिन्ता होने लगी। किसी योग्य उत्तराधिकारी के हाथ में अपने संम्प्रदाय का उत्तरदायित्व सोंपे बिना यह चिन्ता दुर. नहीं हो सकति थी। पूज्य श्री ने अपने संप्रदाय के होनहार और उज्ज्वल चरिश सम्पन्न सन्तों पर दृष्टि . दौडाई । उस समय उनकी दृष्टि आशुकवि साहुछत्रपति कोल्हापुरराज्यगुरु जैनशास्त्राचार्य की पदवी से . विभूषित चरित्र परायण विद्वान : सन्त चरितनायक श्री घासीलालजी महाराज पर केन्द्रित हुई । उन्होंने अपने संप्रदाय का शासनसूत्र पं० श्री घासीलालजी महाराज को सौप देने का दृढ निश्चय किया । .. इस संप्रदाय के प्रधान श्रावक जो वहां मौजूद थे उनसे विचार विनिमय किया गया । संप्रदाय के अनेक सन्तों और श्रावकों से भी राय मंगाई गई और उन्होंने पूज्यश्री के विचारों का हृदय से समर्थन किया । पं. मुनि श्री घासीलालजी महाराज को युवाचार्य पद देनेके लिए ईस संप्रदाय के श्रावक संघ मखियों एवं मुनियों के परामर्श से एक ड्राफ्ट तैयार किया गया । पूज्य श्री ने ड्राफ्ट को अच्छी तरह पढकर उस पर अपनी स्वीकृति फरमादी । इसके बाद पूज्य श्री ने पं. रत्न श्री घासीलालजी महाराज को अपने पास बुलाकर उन्हें संप्रदाय का भार स्वीकार करने के लिए कहा गया । पूज्य श्री की यह एकाएक आशा सुनकर श्री घासीलालजी महाराज बडे बिचार में पड गये । उस समय गुरुदेव की शारीरिक स्थिति भी अस्वस्थ थी । अतः उनकी आज्ञा का उल्लंघन का अर्थ है उनके मन को ठेस पहुंचाना । लेकिन संप्रदाय की इतनी बड़ी जिम्मेदारी को अपने पर लेना भी सहज नहीं था। चरितनायकजी ने कछ विचार कर विनम्र भाव से पूज्य श्री से अजे कि की-“है गुरुदेव ! आपकी आज्ञा का उल्लंघन करने का तो मेरी सहसा हिम्मत नहीं होती । आपने जो मेरे पर संप्रदाय का भार देने का निश्चय किया इसके लिए मैं आपकी कृपा दृष्टि का सदा ऋणी हूं । लेकिन मैं अपने आपको ईस पदवी के लायक नहीं मानता । मुझ से अधिक अनुभव योग्यता शास्त्रीयज्ञान तथा उम्रवाले अनेक साधु इस संप्रदाय में मौजद . है। आप उन्हीं को यह भार सोंप दें। ,, पूज्य श्री के बार वार समझाने पर एवं श्रावकों के अतीव . आग्रह होने पर भी मुनि श्री घासीलालजी महाराज ने युवाचार्य बनने से साफ साफ इन्कार कर दिया । मानव सत्ता का क्या दास है, अधिकार लिप्सा का गुलाम है, गृहस्थ-जीवन में क्या, साधु जीवन में भी सत्ता-मोह के रोग से छुटकारा नहीं हो पाता है । .चे से “चे साधक भी सत्ता के प्रभ पर पहुंच कर . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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