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________________ को विदाई देने के लिए हजारों की संख्या में जनता एकत्रित हुई । सभी की आँखों में आंसू थे । ऐसे समय में स्थानीय जनसमूह की भावोमिया द्यनुभूति गम्य थी और दुःख भरे मन से श्रद्धेय गुरुदेव को आगे के विहार के लिए विदाई दी । और मोलों तक साथ साथ चले और मांगलिक श्रवण कर अपने अपने निवास पर चले गये । कोल्हापुर से विहार कर महाराज श्री का एरला पधारना हुआ । एरला कोल्हापुर से करीब तेरह मील परं पड़ता है । एरला में दिगम्बर समाज की ही बस्ती है । श्वेताम्बर समाज का एक भो घर नहीं है, यहां के पटेल पटवारी भी जैन ही हैं । सारे गांव पर जैन समाज का हो विशिष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता था, यहां पर मुसलमानों के ८४ घर हैं । किन्तु इन में दो दल थे । जिसमें एक दल मस्जिद का निषेध करता था । वर्षों से झगडा चलता था । अनेक मोलवियों ने तथा धर्मगुरुओं ने इस झगडे को समाप्त करने का खूब प्रयत्न किया किन्तु वे सबके सब असफल रहें । इधर महाराज श्री का आगमन हुआ । कोल्हापुर के धर्मप्रचार एवं महाराजा को प्रभावित करने की ख्याति एरला में भी फैल चुकी थी। फलस्वरुप आपके प्रवचन सार्वजनिक स्थानों में होने लगे । एरला में भी बड़ी संख्या में आपके व्याख्यानों का लाभ लोग उठाने लगे आपके प्रवचन में हिन्दू और मुसलमान बड़ी संख्या में उपस्थित होते थे । आप को विद्वता पूर्ण वाणी का जैन जैनेतर पर अच्छा प्रभाव पड़ने लगा । दूपहर के समय महाराज श्री के समीप मुसलमानों के दोनों दलों के प्रतिनिधि आये और महाराज श्री से विनती करने लगे कि आप बडे विद्वान साधु हैं । इस्लाम मजहब को भी आप अच्छी तरह से जानते हैं । उर्दू और फारसी भी आपको आता है । इसलिए हमारो आप से प्रार्थना है कि आप हमारे गांव के झगडे को समाप्त करदें । आप जो भी फैसला देंगे वह हम दोनों को कबूल होगा। महाराज श्री ने कहा कि अच्छा है कल व्याख्यान के बीच फैसला करूंगा। ___ दूसरे दिन व्याख्यान के समय मुसलमानों के दोनों दलों के लोग उपस्थित हुए । अन्य भी जैन जैनेतर जनता बडी संख्या में उपस्थित हुई । महाराज श्री ने एक जानकार मुसलमान से कहा-आपके पास कुरआनेशरीफ है ? उसने कहा जी है ? महाराज श्री ने उसे एक आयत पढने को कहा । जब उसने आयत पढी तो महागज श्री ने उसका अर्थ किया-पूर्व और पश्चिम सब ईश्वर के ही है यानी तुम जिस जिस तरफ मुख करो उस तरफ ईश्वर तुम्हारे सामने हैं वस्तुतः ईश्वर सब जगह है और सभी वस्तु को जानने वाला है (२-११५) ___आयत पढने के बाद महाराज श्री ने कहा महम्मद पैगम्बर सहाबने तमाम सच्चे मुसलमान भाईयों से कहा है कि तुम पाक दिल से नमाज पढो । चाहे मस्जिद में नमाज पढो चाहे घर पर पढो । चाहे जंगल में जाकर पढो सब जगह अल्लाह है और सच्चेदिल से नमाज पढ़ने वाले की प्रार्थना को कबूल करता है । नमाज पढने के लिए किसी स्थान विशेष का आग्रह कुरानेशरीफ में नहीं है । प्रार्थना कहीं भी हो सकती है । लडाई और झगडा करने वाला व्यक्ति कभी इश्वर का प्यारा नहीं हो सकता । हमें दुष्मण नहीं किन्तु दोस्त बढ़ाने चाहिए । मुस्लिम ओलिया शेखसादी ने कहा है "ब चस्माने दिल मबी जुज दोस्त हरचे बीनो बिदाकि मजहरे ओस्त” यानी अपने दिल की आंखो से जिस किसी को देखो उसे सिवाय अपने दोस्त के और कुछ मत समझो, जानलो कि जो कुछ तुम देख रहे हो सब उसी प्रीतम का जहर है उसी का रुप है । जिसे नीचे से ऊपर उठना है जिसे जिन्दगी को रहमान तक पहुंचाना है. जिसे जिन्दगी का सच्चा आनन्द और रस प्राप्त करना है, जिसे अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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