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को शस्त्र-शामला बनाता है और तमाम प्राणियों को जीवन दान देता है । उसी प्रकार आपके पदार्पण से युग से सोये पडे लोग जाग उठे और अपने जीवन को धर्ममय बनाने का प्रयत्न करने लगे। आपने अनवरत प्रयत्न करके जनता को साधना का मार्ग दिखाया । अनेको व्यक्तियों के जीवन को बदलने का उन्हें ऊपर उठाने का श्रेय आपको ही है ।
स्कूल कॉलेज एवं सार्वजनिक स्थानों पर आपके प्रवचन हुए । कोल्हापुर का शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसने आपके प्रवचन न सुना हो आपके प्रवचनों का जनता पर इतना गहरा असर हुआ कि आप जिस मार्ग से निकलते उस मार्ग पर लोग अंजलि बद्ध हो आपके स्वागत में खडे होते । महाराज श्री अब किसी वर्ग विशेष के गुरु नहीं रहें । राजा और प्रजा के गुरु बन गये । महाराज श्री का प्रभाव बढ़ता जा रहा था । स्थानीय लोगों ने आपश्री का चातुर्मास कराने का निश्चय किया तदनुसार कोल्हापुर जैन अजैन सभी प्रतिष्ठित सज्जन चातुर्मास की विनती लेकर महाराज श्री की सेवा में उपस्थित हुए और चातुर्मास की प्रार्थना करने लगे । महाराज श्री ने उनसे कहा- हमारे भी गुरु हैं । हम लोग उन्हीं की आज्ञा में विचरते हैं, उनकी ओज्ञा से ही चातुर्मास आदि करते हैं। वे इस समय मेवाड की राजधानी उदयपुर में विराजमान हैं, यदि उनकी आज्ञा मिल जाय तो हम यहां चातुर्मास कर सकते हैं।
इस पर कोल्हापर के सज्जनों ने अपना एक प्रतिनिधि मण्डल पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज श्री की सेवा में चातर्मास की आज्ञा प्राप्त करने के लिए भेजा । प्रतिनिधि मण्डल उदयपर पहँचा प्रतिनिधि "मण्डल पज्य श्री की सेवा में पहुँच कर बोला-"हम पण्डित श्री घासीलालजी महाराज का चातर्मास अपने यहां कराने की भावना से आप की सेवा में उपस्थित हुए हैं। महाराज श्री के पधारने से कोल्हापर के राजा एवं प्रजाजनों में खूब धार्मिक उत्साह बढा है, पं. मुनि श्री का जनता पर अच्छा प्रभाव पद्ध रहा है। उनके चातुर्मास से कोल्हापुर शहर एवं आस पास के सभी क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में धर्मउपकार की सम्भावना है। इस पर पूज्य श्री ने फरमाया-इस समय हम उन्हें कोल्हापूर चातुर्मास की आज्ञा नहीं दे सकतें । क्योंकि अनेक संप्रदाय सम्बन्धी समस्याएं इस समय मेरे सामने हैं । इसलिए उनका मेरे पास आना अनिवार्य है। उनसे मुझे अनेक बातों का परामर्श भी करना है । अतः वे स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर शीघ्र ही मेरे पास आवें ऐसा मेरा आदेश है ।” पूज्यश्री के मुख से यह सुनकर कोल्हापुर का प्रतिनिधि मण्डल निराश हुओ और अंत्यन्त दुःखित हृदय से लौट आया ।
महाराज श्री के प्रवचन के समय सारा नगर अपना कारोबार बन्द रखता था । यहाँ स्थाकवासी समाज का एक ही घर था । और मन्दिर मार्गियों के तेरह घर । ये सभी बडी श्रद्धा से महराज श्री का प्रवचन सुनते थे । और निरन्तर सेवा में रहते थे । महाराज श्री के यहाँ चौदह जाहिर प्रवचन हुए । सैकड़ों लोगों ने शराब मांस जूआ आदि दुर्व्यसनों का त्याग किवा । लोगों में जैनधर्म के प्रति श्रद्धा बढी । यहां स्थानकवासी मुनियों के अचार विचार से लोग अनभिज्ञ थे । दिवस सम्बन्धी प्रातः कालीन आज्ञा भी देना नहीं जानते थे । केवल एक बहन जो स्थानकवासी थी वह आज्ञा देती थी। कल दिन बिराजकर आपने विहार कर दिया। जब स्थानीय दिगम्बर भाईयों को पता लगा कि महाराज श्री ने विहार करदिया है तो वे भाग-भाग कर महाराज श्री के पिछे दौडने लगे गुरुमहाराज विहार करते हैं। महाराज श्री की सेवा में पहुँच गये । और उन्होने महाराज श्री को मार्ग में ही रोक लिये । वह बहन भी जो प्रतिदिन महाराज श्री को प्रातःकालीन आज्ञा देती थी वह भी दौडी हुई ओई और चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगी महाराज साहब को मेरी यहा से जाने की आज्ञा नहीं है । श्रावक लोग महाराज श्री के सामने उनका रास्ता रोक कर सो गये । अन्त में भगवान को भक्त के सामने झुकना पडा । महाराज श्री को पुनः नगर में लौटना पड़ा, महाराज श्री के पुनः पदार्पण से नगर निवासियों के हर्ष की सीमा न रही । वे अब
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