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पाटलीपुत्र नगर में महापद्म नाम का नौवां नन्द राजा राज्य करता था । कल्पक वंश में उत्पन्न गौतमगोत्रीय ब्राह्मण शकडाल इसी नन्द साम्राज्य का महामंत्री था । यह चतुर राजनीतिज्ञ था । इसकी पत्नी का नाम लांछनदेवी था । इसके दो पुत्र और सात पुत्रियाँ थी । बडे का नाम स्थूलिभद्र और छोटे पुत्र का नाम श्रीयक था । इनको १ यक्षा २ यक्षदत्ता ३ भूता ४ भूतदत्ता, ५ सेना ६ रेणा और ७ वैणा ये सात बहने थी । सातों बहनों को स्मरण शक्ति बड़ी प्रबल थो । पहली एक बार सुनते ही कठिन से कठिन पद्य याद कर लेती थी । इसी प्रकार दूसरी दो बार में, तीसरी तीन बार में, चौथी चार बार में
और क्रमशः सातवी सात बार में । स्थूलिभद्र बचपन से ही विरक्त रहते थे पर वे संसार के प्रति अधिक अनासक्त थे । उनकी यह अनासक्त वृत्ति शकडाल को अखरती थी । उन्होंने सोचा यदि यह कुछ भी चातुर्य प्राप्त नहीं करेगा तो इसका भावी जीवन अधिक अन्धकार पूर्ण बन जायेगा । बिना किसी योग्यता के इसे प्रधान मंत्री का पद कौन देगा ? शकडाल ने इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर स्थूलिभद्र को शहर की प्रमुख वेश्या कोशा के घर भेज दिया । ये कोशा के रूप यौवन में अनुरक्त हो गये और वहीं रहने लगे । शकडाल के द्वितीय पुत्र श्रीयक नन्दराजा के अंग रक्षक पद पर नियुक्त थे। ये राजा के अत्यन्त विश्वासपात्र बन गये ।
पाटली पुत्र में वररुचि नामक एक ब्राह्मण रहता था, जो प्रतिदिन आठसौ नये नये श्लोकों से नन्द राजा की स्तुति करता था । वररुचि के लोकों से प्रसन्न होकर राजा शकडाल मंत्री की ओर देखता परन्तु वह उदासीनता दिखाता । अतएव वररुचि राजदान से वंचित रहता था । एक दिन शकडाल की किं चित् प्रशंसा से प्रसन्न होकर राजा ने वररुचि पण्डित को एक सौ आठ स्वर्णमुद्रा दी । अब प्रतिदिन एक सौ आठ लोक बनाने के पुरस्कार में राजा एक सौ आठ स्वर्णमुद्रा का उसे दान देने लगा ।
एक दिन शकडाल ने सोचा इस तरह से तो राजकोष जल्दि खाली हो जायेगा । उसने नन्द राजा कहा-'राजन् ! आप इसे इतना द्रव्य क्यों देते है ? नन्द ने उत्तर दिया- तुम्हीं ने तो कहा था कि उसके श्लोक बहुत सुन्दर है ।' शकडाल ने कहा-'महाराज यह लौकिक हैं ? ' शकडाल ने उत्तर दिया--इन श्लोकों को मेरी लडकियाँ तक जानती हैं । तब महाराज ने शकडाल से कहा अगर यह बात सत्य है तो इसका निर्णय कल ही राजसभा में होना चाहिए।
दसरे दिन नियमानुसार वररुचि ने राजा की प्रशंसा में नये प्रलोक बनाकर लाया और उसे पदना शुरू किया । शकडाल को सातों कन्याओं ने उसे बारी-बारी से सुनकर याद कर लिया और राजा के कहने पर उन्हें सभा में सुना दिया। सभाजनों को बडा आश्चर्य हुआ । राजा को भी यह विश्वास हो गया कि वररुचि पुराने लौकिक काव्य को ही पढ़ता है। राजा ने वररुचि को पुरस्कार देना बंद कर दिया ।
वररुचि को शकडाल के इस कृत्य पर अत्यंत क्रोध आया और वह उससे बदला लेने का अवसर खोजने लगा।
___ एक बार की बात है, शकडाल के पुत्र श्रीयक का विवाह होनेवाला था। शकडाल ने राजा को निमंत्रित किया और उसके स्वागत के लिए बड़ी धूम-धाम से तैयारियां को । शकडाल की दासी द्वारा वररुचि को उसके घर का सब हाल मालूम होता था। उसने सोचा कि शकडाल से बदला लेने का बहुत अच्छा अवसर है। उसने बहुत से बालक इकट्ठे किये और उन्हें लडू बाँटता हुआ जोर-जोर से गाने लगा--'नंदराजा को मालूम नहीं शकडाल क्या कर रहा है। राजा को मारकर वह अपने पुत्र श्रीयक को राजगद्दी पर बैठाना चाहता है । यह बात सुनकर राजा को बहुत क्रोध आया। उसने गुप्त रूप से मालूम किया कि सचमुच शकडाल के घर बडे जोरों की तैयारियां हो रही है। यद्यपि महामात्य
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