SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 892
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब 10 पाशविक पुद्गल द्रव्य पुनः प्रेक्षण पुरुषार्थ चतुष्टय पूंजीवाद पृच्छना पौषध / पौषधोपवास | प्रकाश संश्लेषण प्रतिकूल प्रतिक्रमण प्रतिद्वंद्विता प्रतिपादक प्रतिपादन प्रतिपाद्य प्रतिमा प्रतिमान प्रतिवासुदेव प्रत्याख्यान प्रबंधन प्रबन्धक प्रमाण प्रमाद प्रमापक प्रवर्तक प्रवर्तन प्रस्फुटित | प्रायोगिक पक्ष प्रेषित बन्ध बलदेव बलात् Jain Education International पशु-वृत्ति | अचेतन रूपी पदार्थ ( Matter) | फिर से अवलोकन (Feedback) चार प्रकार के पुरूषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष पुरोहित, अग्रणी पूंजी आधारित अर्थ-व्यवस्था, इसमें व्यक्ति / समूह के निजी स्वामित्व वाले कारखाने, क्षेत्र आदि होते हैं ये व्यक्ति / समूह अर्थ-लाभ के लिये विविध उत्पादन करते तथा इनके कार्यों में सरकारी हस्तक्षेप भी नहींवत् होता है (Capitalism) पूछना अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्वो में श्रावक-श्राविका द्वारा पाप-क्रियाओं का त्याग कर 4,8,16 प्रहर तक साधु सदृश जीना पेड़-पौधों द्वारा सौर किरणों से भोजन बनाने की प्रक्रिया (Photosynthesis) विरूद्ध, उल्टा, अप्रीतिकर ( Unfavourable) पीछे लौटना, निंद्य कर्मों से निवृत्ति, विभाव से स्वभाव में लौटना मुकाबला करने का भाव, विपक्षी भाव अच्छी तरह व्याख्या करने वाला, समझाने या बताने वाला अच्छी तरह समझाना या बताना, निरूपण करना जिसकी व्याख्या की जाती है श्रावक के ग्यारह तथा साधु के बारह प्रकार के नियम विशेष; मूर्ति मानक (Standard), प्रतिमा, चित्र तिरसठ शलाका पुरूषों ( महापुरूषों) में से नौ पुरूष, वासुदेव के शत्रु युद्ध में वासुदेव के हाथों मरकर नियमा नरक में जाते हैं व्रत, प्रतिज्ञा, पच्चक्खाण, शुभ संकल्प व्यवस्था, तन्त्र (Management) प्रबन्धन करने वाला | सबूत, माप, वस्तु को सर्वांश से ग्रहण करने वाला ज्ञान, सम्यग्ज्ञान | आलस्य, असावधानी, आत्मा की अजागृत प्रमाणित करने वाला किसी काम में प्रवर्त करने (लगाने) वाला किसी कार्य में लगाना, कार्य का आरम्भ करना, प्रोत्साहन देना बाहर निकला हुआ, खिला हुआ, प्रकट हुआ सिद्धांतों के प्रयोग से संबंधित पक्ष, आचार विभाग (Practical Aspect ) भेजा हुआ कर्मों का बंधना तिरसठ शलाका पुरूषों (महापुरूषों) में से नौ पुरूष, वासुदेव के बड़े भाई जो मरकर नियमा स्वर्ग या मोक्ष में जाते हैं बलपूर्वक, जबरदस्ती जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व For Personal & Private Use Only 780 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy