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जीवनशैली भी जीवन-प्रबन्धन का अनिवार्य अंग है। 110 जैनाचार्य हेमचंद्र ने मार्गानुसारी श्रावक का द्वितीय गुण शिष्टाचार–प्रशंसक बताया है, जो सभी जीवन-प्रबन्धकों के लिए पालन करने योग्य है।'' (19) संयमित और असंयमित12 – असंयमित जीवन-व्यवहार में स्वच्छन्दता का आधिपत्य, मन, वचन एवं काया की सीमाओं का अतिक्रमण तथा हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह की वृत्तियों का आधिक्य होता है, जबकि संयमित जीवन-व्यवहार में स्वच्छन्दता का निरोध, हिंसा आदि पाँच पापों का परित्याग तथा स्व और पर दोनों का हित होता है।
जैनदर्शन में सभी के लिए संयमित जीवनशैली को अपनाने का निर्देश मिलता है। गृहस्थ के लिए अल्प संयम रूप अणुव्रतों का विधान है, तो श्रमण के लिए पूर्ण संयम रूप महाव्रतों का। 13 (20) अन्य जीवनशैलियाँ - इसमें समयपरक (Time Oriented), गुणवत्तापरक (Quality Oriented), परिमाणपरक (Quantity Oriented), मितव्ययितापरक (Economy Oriented) या विविधतापरक (Variety Oriented) आदि जीवनशैलियों का समावेश होता है। किसी भी कार्य को करने में समयपरक जीवनशैली में समय की दृढ़ता झलकती है, गुणवत्तापरक में कार्य की गुणवत्ता या स्तर को महत्त्व दिया जाता है, परिमाणपरक में कार्य के परिमाण या मात्रा की मुख्यता होती है और मितव्ययितापरक में व्यय को न्यूनतम करने पर बल दिया जाता है।
जैनदर्शन का मानना है कि सामान्यरूप से व्यक्ति की कार्यशैली ऐसी होनी चाहिए कि कार्य के सभी घटकों को समान महत्त्व दिया जा सके और यदि अपवादरूप से असमान महत्त्व देना पड़े, तो देश, काल, व्यक्ति और परिस्थिति के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।
इस प्रकार, जीवन की प्रमुख जीवनशैलियों के परिज्ञान से यह स्पष्ट है कि व्यक्ति को सतर्कतापूर्वक अपनी जीवनशैली का निर्माण करना चाहिए। वह चाहे तो नकारात्मक जीवनशैली के द्वारा जीवन को निरर्थक बना सकता है और चाहे तो सकारात्मक जीवनशैली के द्वारा सार्थक बना सकता है। जैनदर्शन पर आधारित जीवन-प्रबन्धन की प्रक्रिया सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषण करके समीचीन दिशा-निर्देश देती है, जिसका अनुसरण कर सकारात्मक जीवनशैली के रूप में जीवन का रूपान्तरण किया जा सकता है।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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