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________________ ★ जीव द्रव्य - इनके अपर नाम आत्मा, चेतन, प्राणी, जन्तु आदि हैं। ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व, चारित्र, सुख, वीर्य, क्रियावती शक्ति (गमनागमन की शक्ति) आदि इनके विशेष गुण हैं।134 ये संकोच-विस्तार गुण से भी युक्त होते हैं।135 इनमें रूप, रस, स्पर्श, गन्ध आदि गुणों का अभाव होता है। इनकी संख्या अनन्त है। जीव को छोड़कर शेष समस्त द्रव्य जड़, अचेतन, अनात्मा या अजीव आदि कहलाते हैं। ★ पुद्गल द्रव्य - 'पुद्' का अर्थ है – पूरण (मिलना) तथा 'गल' का अर्थ है – गलन (बिछुड़ना), अतः जिन द्रव्यों में पूरण-गलन अर्थात् बनने एवं सड़ने-गलने की प्रक्रिया होती है, उन्हें पुद्गल कहते हैं, जैसे - मकान, वाहन, शरीर, काष्ठ आदि। 136 स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, क्रियावती-शक्ति आदि इनके विशेष गुण होते हैं। 137 पुद्गल द्रव्य संख्या में अनन्तानन्त होते हैं, ये दो अवस्थाओं में पाए जाते हैं - परमाणु (अणु) एवं स्कन्ध (परमाणुओं का समूह)।138 * धर्म द्रव्य - स्वयं गमन करते हुए जीव और पुद्गल द्रव्यों को गमन करने में जो निमित्त (माध्यम) हो, उसे धर्म द्रव्य कहते हैं, जैसे – गमन करती हुई मछली को गमन करने में जल निमित्त है। यह द्रव्य संख्या में एक है, किन्तु सम्पूर्ण लोक में व्याप्त है।139 ★ अधर्म द्रव्य - स्वयं ठहरते हुए जीव और पुद्गल द्रव्यों को ठहरने में जो निमित्त हो, उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं, जैसे - पथिक को ठहरने में वृक्ष की छाया। यह द्रव्य भी धर्मद्रव्य के समान संख्या में एक और लोकव्यापी होता है।140 ★ आकाश द्रव्य - जो जीवादिक अन्य द्रव्यों को रहने के लिए स्थान देता है, उसे आकाश द्रव्य कहते हैं। आकाश संख्या में एक होते हुए भी सर्वव्यापी (लोक-अलोकव्यापी) है।141 ★ काल द्रव्य - जो जीवादिक द्रव्यों के परिणमन में निमित्त होता है, उसे काल द्रव्य कहते हैं, जैसे कुम्हार के चाक को घूमने के लिए लोहे की कीली। 142 भूत, भविष्य एवं वर्तमान को मिलाकर काल के अनन्त समय होते हैं। इन छह द्रव्यों की व्यापक समझ के द्वारा साधक अपनी असली पहचान खोज लेता है। वह इसका सम्यक् बोध कर लेता है कि इन द्रव्यों में से 'मैं कौन हूँ' और 'पर कौन है' – दूसरे शब्दों में, आत्मा को आत्मा की पहचान मिल जाती है, जो आध्यात्मिक जीवन-प्रबन्धन के लिए प्राथमिक आवश्यकता है। इन छह द्रव्यों के सामान्य गुणों को जानना भी आध्यात्मिक जीवन के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। ये सामान्य गुण संख्या में अनन्त हैं, जिनमें से छह गुण विशेष रूप से समझने योग्य हैं। ये हैं143_ ★ अस्तित्व गुण – जिस शक्ति के कारण द्रव्य न कभी नष्ट और न कभी उत्पन्न होता है, बल्कि त्रैकालिक रहता है, उसे अस्तित्व गुण कहते हैं। ★ वस्तुत्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य में अर्थक्रियाकारित्व (स्वयं के योग्य क्रिया करने 729 अध्याय 13 : आध्यात्मिक-विकास-प्रबन्धन 33 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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