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________________ 13.2 आध्यात्मिक जीवन में साधक, साधन और साध्य की एकरूपता आत्मा को विभाव- दशा से स्वभाव - दशा में लाने वाली आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया में तीन महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं साधक साधन एवं साध्य । सामान्यतया आध्यात्मिक साधना करने वाले को साधक कहते हैं, आध्यात्मिक साधना के लक्ष्य को साध्य कहते हैं और वह उपाय, जिसके माध्यम से साधक साध्य की प्राप्ति करता है, उसे साधन कहते हैं । जीवन - प्रबन्धन की दिशा में इन तीनों के स्वरूप एवं पारस्परिक सम्बन्धों को सम्यक्तया समझना अत्यावश्यक होगा। (1) व्यावहारिक जीवन में साधक, साधन और साध्य व्यावहारिक जीवन में जब भी व्यक्ति को किसी कार्य की सिद्धि करनी होती है, तो सर्वप्रथम साध्य का निर्धारण करना पड़ता है, क्योंकि साध्य-निर्धारण के बिना किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती। तत्पश्चात् साध्य की प्राप्ति के लिए अनुकूल साधनों के ग्रहण एवं प्रतिकूल के त्याग की आवश्यकता भी होती है अन्यथा साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती । साध्य के निर्धारण एवं उचित साधनों के चयन के साथ-साथ योग्य साधक का होना भी बहुत आवश्यक है। साधक उसे कहते हैं, जो प्राप्त साधनों का इस प्रकार प्रयोग करे कि साध्य सिद्ध हो सके। इसी कारण साधक में कुछ निश्चित योग्यताएँ होनी भी आवश्यक हैं। - उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र डॉक्टर बनना चाहता है, तो सर्वप्रथम वह यह सुनिश्चित करता है कि उसे डॉक्टर बनना है। इस साध्य की सिद्धि के लिए वह चिकित्सा महाविद्यालय, शिक्षक, पुस्तकें, अध्ययन कक्ष, फीस, परिवहन आदि साधनों का चयन करता है। इसके साथ ही वह अपनी योग्यता का निर्माण भी करता है, जिससे उसे महाविद्यालय में प्रवेश मिल सके और वहाँ दी जा रही शिक्षा को वह सम्यक्तया ग्रहण कर सके । इस प्रकार, जब साधक, साधन एवं साध्य निष्पत्ति होती है। 6 - (2) आध्यात्मिक जीवन में साधक, साधन और साध्य आध्यात्मिक जीवन में भी व्यावहारिक जीवन की तरह ही साधक, साधन एवं साध्य की एकरूपता होना अत्यन्त आवश्यक है । किन्तु सर्वप्रथम यह जानना होगा कि आध्यात्मिक जीवन में साध्य से हमारा तात्पर्य क्या है, साधन का सम्यक् मापदण्ड क्या है और साधक में क्या-क्या योग्यताएँ अपेक्षित हैं? Jain Education International इन तीनों की एकरूपता होती है, तभी कार्य की जैनदर्शन अनेकान्तवादी है, जिसमें किसी भी तथ्य का निर्धारण एकान्त - दृष्टिकोण से नहीं किया जाता। अतः साधक, साधन एवं साध्य और इनके पारस्परिक सम्बन्धों को भी यहाँ विविध दृष्टिकोणों के माध्यम से समझाया गया है। जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व For Personal & Private Use Only 702 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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