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12.6.5 धार्मिक व्यवहार-प्रबन्धन के पाँच स्तर
धार्मिक-व्यवहार- प्रबन्धन की दिशा में अग्रसर होने वाला साधक निम्नलिखित पाँच स्तरों में उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ अपने लक्ष्य की संप्राप्ति कर सकता है -
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स् कषाय धर्म
त स्थिति साधना
र
स्थिति
प्र
थ
म
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तीव्र मन्द
1) मन्द स्तर 2) तीव्र स्तर 3) तीव्रतर स्तर 4) तीव्रतम स्तर 5) पूर्ण स्तर
ज्ञानोपासना धर्म
(Aspects of Theoretical Study)
अ) प्राथमिक धार्मिक ज्ञानार्जन करना - प्रवचन, सत्संग ( स्वाध्याय), पाठशाला, संस्कार - शिविर, तत्त्वज्ञान शिविर आदि के माध्यम से
ब) देव-गुरु-धर्म में विशेष आस्था उत्पन्न होती हो, ऐसे अध्ययन करना ।
स) मध्यम धार्मिक ज्ञानार्जन करना चारों अनुयोगों का सामान्य अध्ययन स्वयं करना एवं गुरुजनों से शंका का समाधान प्राप्त करना आदि।
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क्रियोपासना धर्म
(Aspects of Practical Study)
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तीर्थयात्रा,
बलात्कार, वेश्यावृति आदि।
अ) विविध धार्मिक आराधनाओं में जुड़ना, जैसे पर्युषण आदि पर्वाराधना चैत्य-परिपाटी, रथयात्रा, सन्त - आगमन, सन्त - विदाई, दीक्षा जैसे वैराग्यवर्धक / भक्तिवर्धक महोत्सव इत्यादि । ब) द्रव्यात्मक रूप से धर्माराधना करना, ब) विशेष रूप से लौकिक धर्म का पालन जैसे जैसे देवदर्शन, देवपूजन, गुरुउपासना करना, अनाथ, रोगी, वृद्ध, माला, जाप, प्राथमिक ध्यान आदि । दीन-दुःखी आदि साधर्मिकों की तन, मन एवं धन से सेवा करना इत्यादि ।
स) शिष्टाचार का पालन करना, मार्गानुसारी के पैंतीस गुणों का यथाशक्ति पालन करना इत्यादि ।
स) छोटे-छोटे तप, सामायिक, पौषध, चिंतन, मनन आदि से जुड़ने का प्रयत्न करना ।
आचरणात्मक धर्म (Implementation of Various Studies in the Practical Life)
जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व
अ) सामान्य रूप से लौकिक धर्म का पालन करना, जैसे राष्ट्रधर्म नगरधर्म, कुलधर्म, अमानवीय कृत्यों का त्याग
हत्या, जुआ, चोरी,
संघधर्म आदि
करना जैसे
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