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32) शान्तस्वभावी होना। 33) परोपकार करने में कर्मठ होना। 34) काम-क्रोधादि छह अंतरंग शत्रुओं को दूर करने में तत्पर होना। 35) इन्द्रिय-समूह को वश में करना। __ इन गुणों से युक्त व्यक्ति गृहस्थ धर्म (देशविरति चारित्र) पालन करने के योग्य बन सकता है। ★ स्थूल दोषों का त्याग करके श्रावक-व्रतों का पालन करना07 -
5 अणुव्रत . | 3 गुणव्रत | 4 शिक्षाव्रत 1) अहिंसा | 1) दिग्व्रत
1) सामायिक 2) सत्य | 2) भोगोपभोग परिमाण | 2) देसावगासिक 3) अचौर्य 3) अनर्थदण्ड त्याग |
| 3) पौषधोपवास 4) ब्रह्मचर्य
4) अतिथि–संविभाग 5) परिग्रह परिमाण ★ ग्यारह प्रतिमा वहन करना108 - 1) दर्शन
7) सचित्त त्याग 2) व्रत
8) आरम्भ त्याग 3) सामायिक
9) प्रेष्यारम्भ त्याग 4) पौषध
10) उद्दिष्ट भोजन त्याग 5) कायोत्सर्ग या दिवामैथुन विरत 11) श्रमणभूत (मुनिवत् जीवन जीना)
6) ब्रह्मचर्य ★ सूक्ष्म दोषों का त्याग करके श्रमण योग्य महाव्रतों का पालन करना 09 -
1) अहिंसा 2) सत्य 3) अचौर्य 4) ब्रह्मचर्य 5) अपरिग्रह ★ अष्ट प्रवचन माता का पालन करना110 -
3 गुप्ति | 5 समिति 1) मनोगुप्ति |1) ईर्यासमिति 4) आदान-भाण्ड-मात्र-निक्षेपक्ष समिति 2) वचनगुप्ति | 2) भाषासमिति 5) पारिष्ठापनिका समिति
3) कायगुप्ति | 3) एषणासमिति ★ श्रमण धर्म का पालन करना11 -
1) उत्तम क्षमा 4) उत्तम शौच 7) उत्तम तप 10) उत्तम ब्रह्मचर्य 2) उत्तम मार्दव 5) उत्तम सत्य 8) उत्तम त्याग 3) उत्तम आर्जव 6) उत्तम संयम 9) उत्तम आकिंचन्य
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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