SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 774
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपर्युक्त बिन्दुओं से स्पष्ट है कि धार्मिक-व्यवहार-प्रबन्धन की जीवन में नितान्त आवश्यकता है। यही वह माध्यम है, जिसके द्वारा हम जीवन का सम्यक् प्रबन्धन कर सकते हैं। यदि हम धार्मिक व्यवहारों का जीवन में उचित प्रबन्धन नहीं करेंगे, तो यह निश्चित है कि शिक्षा, समय, शरीर, वाणी, मन, पर्यावरण, समाज आदि जीवन के विविध पहलुओं का भी सम्यक्-प्रबन्धन सम्भव नहीं होगा। 12.5.4 धार्मिक-व्यवहार-प्रबन्धन कैसे-कैसे किया जाता है? धार्मिक-व्यक्तित्व का सम्यक् निर्माण करने के लिए हमें धर्म को समग्रता से स्वीकार करना होगा। केवल एकपक्षीय धर्म कभी सफल नहीं हो सकता। इस हेतु जैनआचारशास्त्रों में निर्दिष्ट धार्मिक-व्यवहारों को उनके विविध आयामों के साथ ग्रहण करना होगा। दसरे शब्दों में, हमें यह जानना आवश्यक होगा कि धार्मिक-व्यवहार-प्रबन्धन कैसे-कैसे होता है और इसके विविध आयामों के क्या-क्या लाभ हैं? इससे ही हमें अपनी भूमिकानुसार सम्यक् धर्मविधि के चयन की सही समझा आएगी। धर्म-साधना के विविध आयाम इस प्रकार हैं - (1) धर्म उपासनात्मक भी है और आचरणात्मक भी है धार्मिक-व्यवहार–प्रबन्धन के लिए जैन-परम्परा में धर्म के दो रूपों का वर्णन मिलता है - उपासनात्मक एवं आचरणात्मक। यदि गहराई में जाकर देखें, तो निश्चित ही उपासनात्मक धर्म का महत्त्व समझ में आता है। इसके दो विभाग हैं - ज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक। ये दोनों विभाग उन साधनों के समान हैं, जिनसे आचरणात्मक धर्मरूपी साध्य की सिद्धि सम्भव है, परन्तु यदि हम साधन को ही साध्य मान लेंगे, तो कहीं न कहीं धर्म हमारे व्यवहार में चरितार्थ नहीं हो पाएगा और इसीलिए धर्म का जीवन में लाभ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा। वस्तुतः, हमें उपासनात्मक धर्म का सम्यक साधन की तरह प्रयोग करके आचरणात्मक धर्म को जीवन में उतारना होगा। इन दोनों का सम्यक् समन्वय करने हेतु हमें उपासनात्मक धर्म के द्वारा धार्मिक-मूल्यों का ज्ञान प्राप्त कर उसके आधार पर जीवन के दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन करना होगा और अन्ततः आचरणात्मक धर्म के द्वारा जीवन-व्यवहार में धर्म को उतारना होगा। यह निम्न सारणी से स्पष्ट है - धर्म के प्रकार विविध कार्य उद्देश्य सदृश 1) उपासनात्मक क) ज्ञानात्मक स्वाध्याय (सत्संग) - वांचना, पृच्छना, सैद्धान्तिक शिक्षा Like theoretical study in the अनुप्रेक्षा, परावर्त्तना, धर्मकथा आदि। की प्राप्ति classroom ख) क्रियात्मक देवपूजा, गुरु-उपासना, सामायिक, प्रायोगिक शिक्षा Like practical study in the प्रतिक्रमण, जप-तप, पौषध आदि। की प्राप्ति laboratory/workshop 2) आचरणात्मक कर्त्तव्य-सजगता. विकट परिस्थिति में धर्मशिक्षा का Like implementation of समता, जीवन व्यवहार में क्षमादि गुणों जीवन में प्रयोग various studies in the का समावेश आदि। practical life 20 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jabrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy