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विशिष्ट योग्यताओं को बढ़ाने की सर्वाधिक शक्यता है। आवश्यकता इस बात की है कि वह इन विशिष्टताओं का सम्यक् प्रबन्धन करे और यही जीवन-प्रबन्धन का उद्देश्य भी है।
जहाँ सामर्थ्य और स्वतन्त्रता अधिक होती है, वहाँ जीवन जीने के तरीकों में विविधताएँ भी अधिक होती हैं। यही कारण है कि पशुओं की तुलना में मनुष्यों की जीवनशैली में अत्यधिक वैविध्य दिखता है। अक्षमता और परतन्त्रता की विवशता से पश-जाति के प्राणियों की संख्या अधिक होने पर भी जीवन-व्यवहार में प्रायः साम्य होता है, जबकि संख्या अपेक्षाकृत अल्प होते हुए भी प्रत्येक मानव की जीवनशैली अपने आप में अनन्य, अनोखी, अनूठी, विलक्षण और अद्वितीय होती है। कहा जा सकता है – Lifestyle of every individual is unique.
जीवन-प्रबन्धन को समझने के लिए जीवन जीने की इन विविध शैलियों को जानना भी आवश्यक है, क्योंकि व्यक्ति की जीवनशैलियों के विविध रूपों से यह ज्ञात होता है कि प्राप्त
यताओं का प्रयोग किन-किन प्रकारों से किया जा रहा है तथा इनमें से कौन-सा प्रयोग सही हैं एवं कौन-सा नहीं? अपनी शक्ति का सही उपयोग करना ही जीवन-प्रबन्धन है। वस्तुतः, यह महसूस करना होगा कि जीवन कोई यन्त्र नहीं है, जिसके विविध अवयव प्रतिक्षण एक जैसा कार्य कर रहे हों। जीवन की महत्त्वपूर्ण विशेषता है - उसके संवेदनात्मक और भावात्मक पक्ष, जो हर समय यह निर्देश देते रहते हैं कि हमें जीवन कैसे जीना है। इन निर्देशों अर्थात् अन्तरात्मा की आवाज में प्रतिसमय परिवत्तन आने से जीवन-व्यवहार भी सतत बदलता रहता है। यह कभी सकारात्मक हो जाता है और कभी नकारात्मक । अतः प्रस्तुत प्रकरण में हमें जीवन की विविध शैलियों और उनके औचित्य-अनौचित्य का चिन्तन करना है, जिससे हम सम्यक् जीवनशैली को समझ सकें, स्वीकार सकें और उनका अनुकरण कर जीवन का सम्यक् प्रबन्धन कर सकें।
व्यक्ति के समक्ष जीवन-लक्ष्य और उसकी प्राप्ति के उपाय सम्बन्धी अनेकानेक विकल्प होते हैं। वह अपनी आकांक्षाओं एवं आवश्यकताओं के आधार पर इनका चयन एवं प्रयोग करता है। चूंकि आकांक्षाओं एवं आवश्यकताओं में विविधताएँ होती हैं, इसीलिए हमें नानाविध जीवनशैलियाँ भी दृष्टिगोचर होती हैं। जीवन-प्रबन्धन के लिए मुख्य शैलियों को जानना आवश्यक है, जो मेरी दृष्टि में, इस प्रकार हैं - (1) आध्यात्मिक और भौतिक - आत्म-शुद्धि और आत्म-शान्ति पर केन्द्रित जीवनशैली आध्यात्मिक कही जाती है, जबकि अनात्म या जड़ पदार्थों पर केन्द्रित जीवनशैली भौतिक कही जाती
है।
जैनदर्शन के अनुसार, भौतिक प्रगति से हमें केवल सुविधा और सम्पन्नता मिल सकती है, लेकिन शान्ति, सन्तुष्टि, आनन्द और पवित्रता की प्राप्ति तो आध्यात्मिक जीवनशैली से ही सम्भव है। यह निश्चित है कि आध्यात्मिक जीवनशैली को अपनाए बिना जीवन-प्रबन्धन का स्वप्न कभी साकार नहीं हो सकता।
अध्याय 1: जीवन-प्रबन्धन का पथ
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