SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 672
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसी में है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकता के आधार पर परिग्रह का सीमांकन कर अल्प मात्रा में ही वस्तुओं को ग्रहण करे ।' 168 169 ★ आचारांगसूत्र में भी स्पष्ट कहा गया है कि परिग्रह-वृत्ति से बचना चाहिए ।' ★ प्रश्नव्याकरणसूत्र में भी कहा गया है कि स्वयं को अपरिग्रह भावना से संवृत्त कर लोक में विचरण करना चाहिए। 170 ★ आध्यात्मिक दृष्टि से भी देखें, तो यह स्पष्ट है कि जीवन अध्रुव, अनित्य एवं अशाश्वत् है तथा इसमें प्राप्त संयोगों का वियोग सुनिश्चित है, अतः धन, वैभव, परिजन आदि की प्राप्ति, सुरक्षा, उपभोग एवं संचय का अतिरेक करना निश्चित रूप से व्यर्थ ही है । वस्तुतः, अर्थ- प्रबन्धक को अपनी इच्छाओं के आधार पर नहीं, अपितु आवश्यकताओं के आधार पर अपना आर्थिक व्यवहार करना चाहिए। उसका लक्ष्य केवल इतना ही होना चाहिए कि वह अल्प वस्तुओं के माध्यम से अपना जीवन-निर्वाह करता हुआ जीवन-निर्माण के पथ पर कदम बढ़ा सके । उपर्युक्त बिन्दुओं से यह स्पष्ट है कि अर्थ - प्रबन्धक को अपनी भूमिकानुसार परिग्रह का उचित सीमांकन अवश्य करना चाहिए, जिससे उसका जीवन सन्तुलित, समन्वित एवं समग्रता को प्राप्त हो सके। 10.68 अर्थ - प्रबन्धन की प्रक्रिया 50 अर्थ-प्रबन्धन की प्रक्रिया के दो महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं 1) आवश्यकताओं का सम्यक् निर्धारण (1) आवश्यकताओं का सम्यक् निर्धारण प्रबन्धन की दृष्टि से सर्वप्रथम निष्पक्ष और अनाग्रही होकर विवेकपूर्वक अर्थ की आवश्यकताओं को सूचीबद्ध कर उनका आकलन करना चाहिए और फिर विभिन्न दृष्टिकोणों से उनका विश्लेषण करना चाहिए, जिससे आवश्यकताओं का सम्यक् निर्धारण हो सके । - (क) आवश्यकताओं की अवधारणा जीवन - प्रबन्धन के विभिन्न पक्षों में अत्यावश्यक, आवश्यक एवं अनावश्यक की अवधारणा अतिमहत्त्वपूर्ण है। जैनशास्त्रों में हेय एवं उपादेय दृष्टि से इसका विश्लेषण वर्णित है । अर्थ - प्रबन्धन के परिप्रेक्ष्य में इस विश्लेषण के द्वारा हम वास्तविक उपयोगिता एवं अनुपयोगिता को आधार बनाकर अपनी इच्छाओं, आवश्यकताओं एवं माँगों का उचित निर्धारण कर अर्थ का सम्यक् सीमांकन कर सकते हैं । 2 ) आवश्यकतापूर्ति का सम्यक् प्रयत्न Jain Education International ★ अत्यावश्यक वस्तुएँ (Most Important ) वे वस्तुएँ जो जीवन की अनिवार्य एवं प्राथमिक आवश्यकताएँ हैं, जैसे- भोजन, पानी, आवास, वस्त्र, चिकित्सा, शिक्षा आदि । ★ आवश्यक वस्तुएँ ( Important ) दे वस्तुएँ जिनकी अनिवार्यता तो नहीं है, लेकिन उपयोगिता अवश्य है, जैसे सामान्य वाहन, दूरभाष, कम्प्यूटर, मकान, दुकान, पंखा, पलंग जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व - For Personal & Private Use Only 578 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy