________________
उसके जीवन के प्रबन्धन के लिए निर्णायक तत्त्व सिद्ध हो सकता है। अतः उसे चाहिए कि वह निज दायित्व समझकर इस शोध-ग्रन्थ का आद्योपान्त गहन अध्ययन एवं अनुशीलन कर इसमें निर्दिष्ट सिद्धान्तों को विचार और व्यवहार में लाए।
=====4.>=====
अध्याय 1: जीवन-प्रबन्धन का पथ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org