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________________ 9.2 सामाजिक संरचना के आधार पर समाज के प्रकार मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य मनुष्यों से पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करता है, जिसे समाज कहा जाता है। परन्तु यह समाज भी कोई अखण्ड व्यवस्था नहीं है, अपितु अनेकानेक इकाइयों का एक व्यवस्थित रूप है। दूसरे शब्दों में, समाज परिवारों, संस्थाओं, समितियों, समूहों आदि अनेक इकाइयों का सम्मिलित रूप है। इससे भी ऊपर उठकर देखें, तो समाज इन विभिन्न इकाइयों में होने वाली अन्तःक्रियाओं (Interaction) से उत्पन्न सम्बन्धों का एक संगठन है। 4 किसी भी सामाजिक संगठन का मूल आधार उसकी सामाजिक संरचना है। सामाजिक संरचना का सम्बन्ध सामाजिक संगठन की विविध इकाइयों – समूहों, संस्थाओं, समितियों आदि के प्रकार एवं इनके समुच्चय (संकुल/Complex) से है।15 ___श्री पार्सन्स के अनुसार, “सामाजिक संरचना परस्पर सम्बन्धित संस्थाओं, समितियों तथा सामाजिक मानकों और साथ ही प्रत्येक सदस्य द्वारा ग्रहण किए गए पदों तथा कार्यों की विशिष्ट व्यवस्था (Arrangement) को कहते हैं। इससे स्पष्ट है कि सामाजिक संरचना सामाजिक अंगों या इकाइयों की एक विशिष्ट व्यवस्था है। ये इकाइयाँ बिखरे रूप में या अलग-अलग रहकर मूल्यहीन हो जाती हैं, किन्तु जैसे ही इनमें एक पारस्परिक सम्बन्ध बनता है और इसके आधार पर एक निश्चित व्यवस्था का निर्माण होता है, वैसे ही ये इकाइयाँ सम्मिलित रूप से सामाजिक संरचना कहलाती हैं। सामाजिक संरचना के अन्तर्गत प्रत्येक सदस्य या इकाई के कुछ निश्चित स्थान (पद) तथा कार्य (दायित्व) होते हैं, जिनका निर्वाह उसे समाज-प्रबन्धन हेतु करना होता है। वर्तमान परिवेश में यह सामाजिक-संरचना हमें विविध सामाजिक संगठनों, विधानसभाओं, संसद आदि के रूप में दिखाई देती 9.2.1 सामाजिक संरचना की विशेषताएँ सामाजिक-प्रबन्धन के सन्दर्भ में सामाजिक-संरचना की निम्न विशेषताएँ हैं - 1) यह एक व्यवस्था है और जब इस व्यवस्था के अनुरूप प्रत्येक सदस्य अपना-अपना दायित्व उचित ढंग से निभाता है, तब वह अवस्था सामाजिक-संगठन या प्रबन्धन कहलाती है, किन्तु ऐसा न होने पर सामाजिक विघटन की स्थिति पैदा हो जाती है।" 2) सामाजिक संरचना परिवर्तनशील है, इसमें देश, काल एवं परिस्थिति के आधार पर सदस्यों की स्थिति (Status) और कार्य (Role) में परिवर्तन आता रहता है। 3) सामाजिक संरचना जितनी सुचारु रूप से पद एवं दायित्व का वितरण करती है, सामाजिक संगठन उतना ही अधिक मजबूत बनता है। 4) सामाजिक संरचना अपेक्षाकृत स्थायी व्यवस्था है, क्योंकि इसमें विद्यमान परिवारादि इकाइयों तथा इनके पारस्परिक सम्बन्धों में सामान्यतया स्थायित्व पाया जाता है।20 अध्याय 9 : समाज-प्रबन्धन 497 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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