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________________ (घ) रासायनिक शस्त्रों का प्रयोग एवं युद्ध 38 – आज विश्व में रासायनिक एवं आणविक शस्त्रों की होड़ लगी हुई है। इनके परीक्षणों एवं युद्ध में प्रयोगों से पर्यावरण में अत्यधिक प्रदूषण उत्पन्न होता है तथा मानव एवं अन्य प्राणियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इससे बचने के लिए आचारांग में एक सूत्र दिया गया है – 'अत्थि सत्थं परेणपरं, नत्थि असत्थं परेणपरं' अर्थात् शस्त्रों में एक से बढ़कर एक हो सकते हैं, किन्तु अशस्त्र (अहिंसा) से बढ़कर कुछ नहीं है।239 निःशस्त्रीकरण का यह निर्देश अर्थपूर्ण है, क्योंकि आज प्रायः सभी राष्ट्रों का अधिकतम व्यय इन्हीं अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण अथवा क्रय पर हो रहा है। इस प्रकार, जैनाचार में ऐसे अनेकानेक निर्देश दिए गए हैं, जो त्रस प्राणियों के संरक्षण के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। आगे, जैनाचार पर आधारित कुछ निर्देश दिए जा रहे हैं, जिनका अनुपालन कर त्रस जीवों का संरक्षण किया जा सकता है - 1) रात्रि भोजन न करें, क्योंकि रात्रि में दृश्य-अदृश्य कई जीवों की हिंसा होती है। 2) पाँच प्रकार के फलों – बड़, पीपल, पिलंखण, उदुम्बर एवं गूलर का परित्याग करें, क्योंकि इनमें कई त्रस जीव होते हैं, जिनका सेवन मनुष्य के लिए घातक भी होता है। 3) चार महाविगई अर्थात् महाविकृतियाँ – मांस, मदिरा, मधु एवं मक्खन का त्याग करें। 4) शुद्ध छना हुआ अथवा उबला हुआ पानी ही पीएँ। 5) घर की साफ-सफाई में चींटी, मकोड़े, खटमल आदि की हिंसा न करें। 6) मच्छरों को न मारें। 7) बाजार में जिन वस्तुओं में अण्डे, मांस, चर्बी आदि अवांछनीय वस्तुएँ मिलाई जाती हैं, उनका क्रय-विक्रय न करें। 8) चमड़े या फर आदि से बने उत्पाद, जैसे – पर्स, बेल्ट, जूते, चप्पल, हाथ-मोजे, जैकेट नहीं पहने। 9) सजावट के सामानों में हाथी-दाँत आदि से बनी वस्तुओं को न रखें। 10) अनावश्यक लाइट्स , पंखे आदि का उपयोग करके अनेकानेक पतंगे आदि उड़ने वाले जीवों की हिंसा न करें। 11) गमनागमन के लिए वाहनों का प्रयोग कम से कम हो तथा पैदल चलते हुए दृष्टि नीचे एवं ___ साढ़े तीन हाथ सामने रहे, जिससे चींटी आदि की हिंसा न हो। 12) प्राचीन युग से ही वर्षाकाल में धर्म आराधना अधिकाधिक करने और विराधना अर्थात् हिंसा आदि असत्प्रवृत्तियाँ अल्पातिअल्प करने के लिए कहा गया है, इसका अनुपालन करें। 13) बड़े जन्तुओं, जैसे - चूहा, कॉकरोच, छिपकली आदि की हिंसा अनायास भी न हो, इसका ध्यान रखें। 56 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 480 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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