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________________ यद्यपि साधु तथा गृहस्थ दोनों को पृथ्वी का उपयोग करना होता है, फिर भी प्रमादवश पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा होने पर ये हिंसा की आलोचना करते हैं, उन निरपराध जीवों से क्षमायाचना करते हैं एवं भविष्य में उनकी हिंसा नहीं करने का संकल्प भी करते हैं। आलोचना पाठ की निम्न पंक्तियाँ उदाहरणस्वरूप हैं168 - पृथ्वी पाणी तेउ वायु वनस्पति। ए पांचे थावर कह्यां ए।।1।। करी करसण आरम्भ क्षेत्र जे खेड़ीया। कुवा तलाब खणावीया ए।।2।। घर आरम्भ अनेक, टांका · भोयरा। मेडी माल चणावीआ ए।।3।। लीपण गुम्पण काज, एणी परे परे परे। पृथ्वीकाय विराधिया ए||4|| आलोचना पाठ में आशय यह है कि गृहस्थ जीवन में घरेलु एवं व्यावसायिक अनेक कार्य ऐसे होते हैं, जिनमें पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा अर्थात् भूमि-संसाधनों का प्रयोग किया जाता है। इससे भूमि प्रदूषण भी बढ़ता है। फिर भी, अपने जीवन-रक्षण हेतु उन्हें करना पड़ता है, अतः ऐसे समस्त कार्यों की आलोचना करना ही उपर्युक्त पंक्तियों का भाव है। नीचे एक सूची दी जा रही है, जिसका अंशतः अथवा पूर्णतः पालन करके गृहस्थ भी न केवल पृथ्वीकायिक जीवों से सम्बन्धित अर्थहीन असत्कर्मों से बच सकते हैं, बल्कि पर्यावरण-प्रबन्धन के लक्ष्य को भी साध सकते हैं - 1) आवश्यकता से अधिक भवन निर्माण नहीं करें। 2) आवश्यकता से अधिक कुएँ, बावड़ी, ट्यूबवेल आदि नहीं खुदवाएँ। 3) अपशिष्ट पदार्थों को पूरा-पूरा उपयोग करके एवं निर्जीव भूमि का सम्यक् प्रतिलेखन करके ही फेंकें। 4) स्नानघर में प्रयोज्य सामग्रियों, जैसे – साबुन, डिटर्जेण्ट, दन्त-मंजन, वॉशिंग पाउडर, शेम्पू आदि की यथाशक्य मर्यादा बनाएँ। 5) शौचालय में प्रयुक्त फिनाइल, टॉयलेट क्लीनर की अपेक्षा बेकिंग पाउडर आदि का उपयोग करें। 6) शारीरिक सामग्रियों, जैसे – सिन्थेटिक वस्त्र, आभूषण, जूते-चप्पल आदि की मर्यादा करें। 7) शृंगार प्रसाधन, जैसे – पाउडर, क्रीम, लिपिस्टिक, फाउण्डेशन, रुज पाउडर, फेस पाउडर, मस्करा, आई लाइनर, शेविंग सोप, शेविंग क्रीम, आफ्टर शेव, डीओड्रेन्ट (Deodorant), बॉडीस्प्रे, हेयर डाई, हेयर जेल, हेयर स्प्रे, हेयर रिमुवर, बॉडी लोशन, नेलपॉलिश, लिप 38 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 462 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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