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________________ कलह आदि के द्वारा ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है। इसके प्रभाव से न केवल सुनने की क्षमता में कमी आती है, अपितु कई प्रकार के शारीरिक रोग, जैसे – उच्च रक्तचाप, हृदय-धड़कनों की वृद्धि, सिरदर्द आदि भी उत्पन्न होते हैं। इतना ही नहीं, इसके निमित्त से कई मानसिक रोगों, जैसे - चिड़चिड़ाहट, बेचैनी, क्रोध, अल्प आत्मविश्वास, हताशा, हत्या आदि में भी विशेष अभिवृद्धि होती है। इसका प्रभाव पशु-पक्षियों पर भी स्पष्ट दिखाई देता है, जो भयभीत होकर इधर-उधर भागते रहते हैं। ___ अतः भगवान् महावीर ने प्राचीन युग में जो मौन का उपदेश दिया है, वह आज भी प्रासंगिक है। उनका कहना है2 – मौन के साधक समत्व प्राप्त कर संसार से मुक्त हो जाते हैं। (10) जलवायु परिवर्तन (Climatic change)63 – किसी भी देश या प्रदेश की उन्नति का प्रमुख घटक होता है - जलवायु। जलवायु का निर्धारण स्थान-विशेष की अक्षांश-देशांश स्थिति एवं समुद्र-तल से उसकी दूरी-ऊँचाई आदि के आधार पर होता है। जलवायु पर ही खाद्य-पदार्थों की उत्पादकता, ऊर्जा की आवश्यकता, मैदानों का निर्माण, वर्षा की मात्रा, ठण्ड अथवा गर्मी की अधिकता इत्यादि निर्भर रहती हैं। वर्तमान में वायु प्रदूषण बहुत अधिक होने से जलवायु में असन्तुलन उत्पन्न हो रहा है, इसे ही जलवायु परिवर्तन की समस्या कहते हैं। इसके प्रमुख कारण हैं - ★ औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप कार्बन-डाई-ऑक्साइड (CO.), मिथेन गैस (CH.), कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO), क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन गैसेस (CFC), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO), सल्फर-डाई-ऑक्साइड (SO.) आदि गैसों की भारी अभिवृद्धि होना। ★ वनों की कटाई होना – आदर्श जलवायु के लिए 1/3 भाग वन, 1/3 भाग मनुष्य और 1/3 भाग जन्तु होना चाहिए, लेकिन सन् 2008 में केवल 8-10 प्रतिशत वन ही बचे हैं। ★ विश्व ताप-वृद्धि होना इत्यादि। ___ जलवायु परिवर्तन की उपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि इसके अनेक दुष्परिणाम हो सकते हैं, जैसे - ★ कृषि-उत्पादन में 10 से 25 प्रतिशत कमी की आशंका। ★ जल-संकट की भीषण समस्या की सम्भावना, विशेषकर कुवैत, इजराइल, जार्डन आदि में। ★ पारिस्थितिकी-तन्त्र पर प्रभाव, जैव-विविधता को खतरा, वनखण्डों का घास-स्थल में बदलना, घास-स्थलों का मरूस्थलों में बदलना, आर्द्रता में कमी आना इत्यादि। ★ जल-चक्र पर प्रभाव। ★ संक्रमण रोग, जैसे – मलेरिया, डेंगू, लू आदि के तेजी से फैलने की शंका। ★ समुद्र में एलनीनो प्रभाव (गर्म-धारा की उत्पत्ति होकर तापमान 50°C से अधिक हो जाना) 16 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 440 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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