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________________ इनका प्रभाव आमजीवन में स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। आज स्नान आदि तो दूर, पीने के लिए भी शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। महात्मा गाँधी की स्वतन्त्र भारत में यह कल्पना थी कि सभी नागरिकों का प्राकृतिक संसाधनों पर समान अधिकार हो, लेकिन अब पानी भी बिकने लगा है। इतना ही नहीं, प्रदूषित जल को पीने से कई बीमारियाँ, जैसे – हैजा, दस्त, पीलिया, टायफॉइड, चर्म रोग आदि उत्पन्न हो रही हैं। प्रतिवर्ष असंख्य पेड़-पौधे, पशु-पक्षी ही नहीं, अपितु गरीब मनुष्य भी अकाल मृत्यु के शिकार हो रहे हैं। आश्चर्य है कि पिछले 60 सालों में जल को लेकर हिंसा के 37 बड़े मामले भी हुए हैं। इन सबसे यह निष्कर्ष निकालना आसान है कि यदि जल-संरक्षण करना है, तो जैनआचार को हास्योचित नहीं, व्यवहारोचित बनाना होगा। जैनाचार पर आधारित जल-संरक्षण के बिन्दुओं पर विस्तृत चर्चा आगे की जाएगी। 8.3.3 अग्नि -प्रदूषण (Fire and Light Pollution) __ जैन-परम्परा में गृहस्थ उपासक को अग्नि का प्रयोग अल्पातिअल्प करने का उपदेश दिया जाता है, लेकिन आजकल अग्नि का प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। रात्रिकालीन प्रकाश-व्यवस्था, विद्युत् चालित उपकरणों, औद्योगिक भट्टियों, वाहनों, रसोईघर के चूल्हों आदि में अग्नि का प्रयोग बहुलता से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में होता है। इनसे अग्नि–प्रदूषण होता है। वस्तुतः, नैसर्गिक रूप से मौजूद ताप, प्रकाश आदि में अग्निजन्य कृत्रिम परिवर्तन ही अग्नि-प्रदूषण है। कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ, प्राकृतिक गैस आदि से प्रज्ज्वलित अग्नि से न केवल तपन बढ़ता है, अपितु उत्सर्जित कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, सल्फर डाई-ऑक्साइड आदि से वायु-प्रदूषण भी बढ़ता है, जिससे मानव के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव आता है। सभी जानते हैं कि सिगरेट-बीडी के धएँ से श्वास सम्बन्धी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। इतना ही नहीं, अग्नि के प्रज्ज्वलित होने पर कई कीट, पतंगे, तितलियाँ आदि भ्रमित होकर मर जाती हैं। वाहन से निकलने वाला धुआँ भी स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होता है। रात्रिकालीन प्रकाश व्यवस्था के दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं, दुनिया की दो-तिहाई आबादी तो सही ढंग से आकाशगंगा भी नहीं देख पा रही है। जर्मनी में सन् 2003 में एक शोध-अध्ययन में बताया गया कि एक स्ट्रीट लाइट से एक रात में औसतन 150 कीट मर जाते हैं। इससे कुल मिलाकर पारिस्थितिक अस्थिरता ही उत्पन्न होती है, जो अवांछनीय है। अतः जैन सिद्धान्तों का अनुकरण कर अग्नि के विविधरूपों के उपयोगों को सीमित करने की आज अनिवार्य आवश्यकता है। इसकी विस्तृत चर्चा आगे की जाएगी। 8.3.4 वायु प्रदूषण (Air Pollution) जैन-परम्परा में वायु को प्रदूषित करने वाले प्रयोगों का स्पष्ट निषेध किया गया है, किन्तु दुनिया में इन दिनों वायु प्रदूषण को खूब बढ़ावा मिल रहा है। 12 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 436 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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