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★ अस्त्रों की होड़ - संयुक्तराष्ट्रसंघ के विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व में प्रति मिनिट 20
लाख डॉलर (लगभग दस करोड़ रूपये) हथियारों पर खर्च हो रहे हैं। विकसित राष्ट्र मोटे तौर पर अस्त्रों पर उतना ही व्यय कर रहे हैं, जितना नागरिकों के स्वास्थ्य और सार्वजनिक शिक्षा पर, जबकि विकासशील देश स्वास्थ्य की देखभाल की अपेक्षा हथियारों पर 30 गुणा अधिक खर्च कर रहे हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि शस्त्रों की होड़ आधी मानवता को नष्ट कर रही है अर्थात् हथियारों पर होने वाले खर्च से धरती पर रहने वाले हर दूसरे व्यक्ति की
सहायता की जा सकती है। * कार्बन-डाई-ऑक्साइड की बढ़ती मात्रा - कार्बन-डाई-ऑक्साइड (CO2) का विश्व में प्रतिवर्ष उत्पादन, जो सन् 1948 में 559 करोड़ टन और सन् 1980 में 2010 करोड़ टन था, उससे बढ़कर सन् 2025 तक 17,900 करोड़ टन होने की सम्भावना है। हवाई में स्थित 'मौन-लाओ वेधशाला' के वैज्ञानिकों का मानना है कि सन् 2040 तक CO, का जमाव आज से दो गुणा हो जाएगा। चूंकि CO, ही वैश्विक ताप-वृद्धि का कारण है, अतः यह आगामी
संकट का संकेत है। * विश्व तापवृद्धि – विगत शताब्दी में दुनिया का तापमान लगभग 0.6° से 0.7°C तक बढ़ा है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह आगे भी बढ़ता रहेगा। अनुमान है कि सन् 2100 तक वह 5° से 7°C तक बढ़ जाएगा। तापमान की निरन्तर तीव्र वृद्धि भावी के तीव्र संकटों की परिचायिका
है।39
★ ओजोन परत में छिद्र – क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैसों (CFC) के कारण हमारी जीवन-रक्षिका
ओजोन परत में छिद्र होता जा रहा है, जिससे हानिकारक पराबैंगनी तथा ब्रह्माण्डीय किरणें
पृथ्वी पर पहुँच रही हैं। वर्तमान में यह ओजोन छिद्र आस्ट्रेलिया के आकार का हो चुका है।40 ★ अपशिष्ट पदार्थ – शहरी विकास मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें, तो एक लाख से अधिक
आबादी वाले 5100 से अधिक भारतीय कस्बे मिलकर प्रतिदिन एक लाख पंद्रह हजार टन ठोस अपशिष्ट (Solid Wastage) पैदा करते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के अनुसार, नगरनिकाएँ अपने सीमित संसाधनों एवं समस्या के प्रति उत्तरदायित्व के अभाव के कारण प्रतिदिन पैदा हो रहे कचरे का 10 से 40% हिस्सा उठाने में भी असमर्थ रहती है। यह तथ्य इस बात को दर्शाता है कि हम पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति कितने जागरूक हैं।
इस प्रकार, वर्तमान में चयनित कतिपय सांख्यकीय प्रस्तुतियों के माध्यम से पर्यावरण की अतिभयावह एवं अतिविचारणीय स्थिति की एक झलक हमारे सामने आती है। प्राचीन धर्मदर्शनों विशेषतः जैनदर्शन की शिक्षाओं की उपेक्षा का परिणाम आज पर्यावरणीय समस्याओं के रूप में उभर रहा है।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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