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________________ सन्दर्भसूची 1 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/479 2 भारतीयमनोविज्ञान, डॉ.लक्ष्मी शुक्ला, पृ. 80 3 वही, पृ. 95 4 वही, पृ. 83-84 5 वही, पृ. 84 6 बृहद् अरण्यक, 1/5/3 (भारतीयमनोविज्ञान, डॉ.लक्ष्मी शुक्ला, पृ. 80-81 से उद्धृत) 7 भारतीयमनोविज्ञान, डॉ.लक्ष्मी शुक्ला, पृ. 112 8 वही, पृ. 83-84 9 वही, पृ. 84 10 वही, पृ. 83 11 वही, पृ. 80 12 भारतीय दर्शन में मन की अवधारणा (शोध-प्रबन्ध), नागेंद्रसिंह ठाकुर, पृ. 27 (न्याय), पृ. 25 (वैशेषिक), पृ. 37 (सांख्य), पृ. 37 (योग), पृ. 38 (मीमांसा), पृ. 18 (वेदान्त), 13 वही, पृ. 34 (न्याय), पृ. 25 (वैशेषिक), पृ. 36 (सांख्य), पृ. 36 (योग), पृ. 17 (मीमांसा), पृ. 20 (वेदान्त) 14 वही, पृ. 37 (सांख्य), पृ. 18 (वेदान्त) 15 वही, पृ. 29 (न्याय), पृ. 25 (वैशेषिक), पृ. 39 (सांख्य), पृ. 39 (योग), पृ. 16 (मीमांसा), पृ. 19 (वेदान्त) 16 अभिधम्मत्थसंगहो, पृ. 1 (जैन, बौद्ध और गीता, डॉ. सागरमलजैन, 1/494 से उद्धृत) 17 भारतीयदर्शन, दत्ता (वही, पृ. 495 से उद्धृत) 18 कठोपनिषद्, 1/3/3, 4 एवं 10 (भारतीयमनोविज्ञान, डॉ. लक्ष्मी शुक्ला, पृ. 93 से उद्धृत) 19 अभिधानचिन्तामणिः, 6/5 20 विशेषावश्यकभाष्य, 3525 21 सूत्रकृतांगसूत्रवृत्ति (जैनभारती पत्रिका, जनवरी, 2007, पृ. 22 से उद्धृत) 22 स्थानांगसूत्र सटीक (अभिधानराजेन्द्रकोष, 6/74 से उद्धृत) 23 व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, 13/7/10 24 षट्खण्डागम (धवला) (जैनभारती पत्रिका, जनवरी, 2007, पृ. 22 से उद्धृत) 25 द्रव्य मन का लक्षण, जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, 3/270 26 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 2/480 27 चित्त और मन, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 4 28 भारतीयमनोविज्ञान, डॉ.लक्ष्मी शुक्ला, पृ. 102 29 तत्त्वार्थसूत्र, 1/15 30 नन्दीसूत्र, 53-60 31 तत्त्वार्थसूत्र, 1/13 32 चित्त और मन, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 21-22 33 वही, पृ. 22 34 द्रव्यसंग्रह, 41 35 वही, 41, 42 36 चित्त और मन, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 23 37 जैन दर्शन, मनन और मीमांसा, मुनि नथमल, पृ. 559 38 संशय-प्रतिभा-स्वप्न-ज्ञानोहासुखादिक्षमेच्छादयश्च मनसो लिंगानि – सन्मतिप्रकरण, काण्ड 2 (जैनदर्शन, मनन और मीमांसा, मुनि नथमल, पृ. 515 से उद्धृत) 39 इन्द्रियेणेन्द्रियार्थो हि, समनस्केन गृह्यते। कल्प्यते मनसाप्यूचं, गुणतो दोषतो यथा ।। - चरकसूत्र, 1/20 (वही, पृ. 515 से उद्धृत) 40 सर्वार्थसिद्धि, 1/14 41 गोम्मटसार (जीवकाण्ड), 2/443 42 सर्वार्थसिद्धि, 2/11 43 श्रीभिक्षु-आगमविषयकोश, 2/458 44 जैनसिद्धान्तदीपिका, 2/33 (जैन दर्शन, मनन और मीमांसा, __मुनि नथमल, पृ. 515 से उद्धृत) 45 योगशास्त्र, 12/2 (जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 2/494 से उद्धृत) 46 जैनभारती (पत्रिका), नवंबर, 2005, पृ. 25 47 मैत्राण्युपनिषद्, 4/11 (जैन, बौद्ध और गीता, डॉ. सागरमलजैन, 1/482 से उद्धृत) 48 कर्मग्रन्थ, 5/37 49 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/482 50 उत्तराध्ययनसूत्र, 29/57 51 उपदेशपुष्पमाला, मल्लधारी हेमचंद्रसूरि, 100 52 व्यवहारभाष्य, 1028-1029 53 उच्चतर सामान्य मनोविज्ञान, अरुणसिंह, अ. 5-10 54 आचारांगसूत्र, 2/3/28 55 मनोरोग, पृ. 9-10 56 भगवतीआराधना, 1325 57 तत्त्वार्थसूत्र, 5/29 58 स्वभावादन्यथाभवनं विभावः - आलापपद्धति, 6 (जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, 3/557 से उद्धृत) 59 किसने कहा मन चंचल है?, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 159 60 श्रमणपत्रिका, जनवरी-मार्च, 1997, पृ. 2 60 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 422 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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