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________________ असा है। इस तकनीक के मूलतः दो भेद हैं - (क) सामान्य आध्यात्मिक तकनीक - इसके द्वारा अशुभ भावों से निवृत्ति एवं शुभ भावों में प्रवृत्ति होती है, साथ ही जीवन में शुभाशुभ भावों से परे शुद्ध (साक्षी) भाव को समझने एवं उसमें जीने का प्रयत्न भी होता है। (ख) विशेष आध्यात्मिक तकनीक – इसके द्वारा व्यक्ति चतुर्थ स्तर से भी ऊपर उठने का प्रयत्न करता है। वह अधिक से अधिक साक्षीभाव में लीन होता जाता है। वह अब बड़ी-बड़ी असहनीय परिस्थितियों में भी समता का अभ्यास करता है। अन्ततः वह वीतरागदशा को प्राप्त होकर मानसिक-प्रबन्धन के पाँचवे स्तर अर्थात् चरम स्तर पर पहुँच जाता है। इस प्रकार, उपर्युक्त मानसिक-प्रबन्धन के स्तरों में से प्रथम तीन में परिवर्तन तकनीक तथा शेष दो में विसर्जन तकनीक की मुख्यता होती है। दूसरे शब्दों में, साधना के विकास के साथ-साथ विसर्जन तकनीक की प्रधानता होती जाती है। =====4.>===== 56 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 418 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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