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________________ (ख) धार्मिक या नैतिक तकनीक - यह धर्मानुकूल तकनीक है, जैसे – मन्दिर जाना, पूजा करना, प्रार्थना करना, सामायिक करना, जप करना आदि। इसमें मुख्यतया व्यक्ति के आवेगों को न केवल तीव्र-स्तर से मन्द-स्तर में, अपितु मन्द-स्तर से मन्दतर-स्तर में भी लाने का अभ्यास कराया जाता है। इस अपेक्षा से यह तकनीक व्यावहारिक-तकनीक से श्रेयस्कर है। तकनीक आवेगों की स्थिति अनुचित व्यावहारिक तकनीक तीव्र → तीव्र उचित व्यावहारिक तकनीक तीव्र → मन्द धार्मिक एवं नैतिक तकनीक तीव्र → मन्द → मन्दतर जैनाचार्यों के अनुसार, धार्मिक एवं नैतिक शिक्षाओं को प्राप्त करने से व्यक्ति के भाव परिष्कृत होते हैं, शनैः-शनैः अशुभ भाव मन्द होते जाते हैं और शुभ भावों का विकास होता जाता है। व्यक्ति जीवन में देव-पूजा, गुरु-उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप एवं दान रूप शुभ प्रवृत्तियाँ करता है, जिससे मनोविकार उपशान्त हो जाते हैं। व्यक्ति के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आने लगता है, उसका क्रोध क्षमा में, अहंकार विनय में, कुटिलता सरलता में, लोभ सन्तोष में, अधीरता धैर्य में एवं असहिष्णुता सहिष्णुता में परिवर्तित होने लगती है। यद्यपि व्यावहारिक एवं धार्मिक दोनों ही परिवर्त्तन-तकनीक हैं, फिर भी परिणामों की अपेक्षा से इनमें बहुत अन्तर है। धार्मिक-परिवर्तन-तकनीक की विशेषता यह है कि इसके द्वारा व्यक्ति न केवल मनोविकारों का उपशमन करता है, अपितु मानसिक-प्रबन्धन के चतुर्थ स्तर तक पहुँचने की पात्रता भी विकसित कर लेता है। (2) विसर्जन-तकनीक (Elimination Technique) तृतीय स्तर से ऊपर उठकर जीवन-प्रबन्धक चतुर्थ स्तर में पहुँचता है, यहाँ वह विसर्जन-तकनीक का प्रयोग करता है। इसमें मूलतः सम्यग्ज्ञान के आलोक में कषायादि विकारों पर विजय प्राप्त करने का अभ्यास किया जाता है, जैसे – ध्यान के द्वारा बाह्य पदार्थों के प्रति ममत्व का विसर्जन आदि। इसके द्वारा वह मनोभावों में सकारात्मक परिवर्तन लाने के साथ-साथ मनोविकारों के मूल कारणों का उच्छेद करने का भी बारम्बार प्रयत्न करता है। 417 अध्याय 7: तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन 55 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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