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________________ 7.7.2 मानसिक-प्रबन्धन के विविध स्तर प्रत्येक व्यक्ति का बाह्य परिवेश निरन्तर बदलता रहता है और इसके साथ-साथ उसकी मनोदशा भी जलतरंगों के समान कभी ऋणात्मक (Negative), तो कभी धनात्मक (Positive) एवं कभी तीव्र तो कभी मन्द होती रहती है। इतना ही नहीं, प्रयत्न करने के पश्चात् भी परिणाम कभी अनुकूल , तो कभी प्रतिकूल मिलते रहते हैं। इसी कारण , मानसिक-प्रबन्धन की पूर्व निर्दिष्ट विविध पद्धतियों का समग्र एवं समन्वित परिज्ञान तथा प्रयोग प्रत्येक जीवन-प्रबन्धक के लिए आवश्यक है। उसे बदलते हुए परिवेश में प्राप्त होने वाले संयोगों के साथ उचित समायोजन करते हुए अपनी भूमिका (स्तर) के अनुरूप योग्य पद्धति का प्रयोग करना चाहिए, साथ ही अपने स्तर को उत्तरोत्तर परिष्कृत भी करना चाहिए। ये स्तर निम्न प्रकार के हो सकते हैं - 1) तीव्र मानसिक विकार 4) मन्दतम मानसिक विकार 2) मन्द मानसिक विकार 5) पूर्ण विकारमुक्त अवस्था 3) मन्दतर मानसिक विकार 413 अध्याय 7: तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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