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________________ के रूप में अभिव्यक्त होता है। जैनाचार्यों ने इस परिणाम को आर्त्तध्यान के रूप में प्रतिपादित किया है और इसे भी संक्लेश तथा पापकर्मों के बन्धन का हेतु कहा है। 82,8 नकारात्मक तनाव आ र्त्त ध्या न प्राप्त हुई अप्रिय वस्तु से मुक्त होने की चिन्ता वियोग हुई प्रिय वस्तु को प्राप्त करने की चिन्ता अप्राप्त प्रिय वस्तु को प्राप्त करने की चिन्ता शारीरिक वेदना से मुक्त होने की चिन्ता 383 Jain Education International 142 यद्यपि आधुनिक मनोवैज्ञानिक केट्स डी व्रिज (Kets de Vries, 1979) के अनुसार, हर व्यक्ति को अपने कार्यों को सम्पादित करने के लिए कुछ दबाव या तनाव आवश्यक है, 84 परन्तु जैनदृष्टि के अनुसार, यह विचारणा उचित नहीं है, इसे नियम नहीं बनाया जा सकता। जैनाचार्यों के अनुसार, व्यक्ति को सम्यक् विचारों के साथ तनावरहित होकर कार्य का सम्पादन करना चाहिए। कहा भी गया है कार्य करो, लेकिन मन को दूषित मत होने दो। 85 — ति मनुष्य के जीवन-व्यवहार में तनाव की मात्रा का भी महत्त्व है। मात्रा के आधार पर भी तनाव के दो रूप हो सकते हैं र्यं 1) उच्च तनाव (Hyper Stress ) वह तनाव, जिसका स्तर बहुत अधिक तीव्र होता है और जो व्यक्ति की अनुकूलन (Adaptation) की सीमाओं को भी पार कर जाता है, उच्च तनाव कहलाता है, जैसे अत्यधिक कार्यालयीन कार्यभार, अत्यधिक पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्व, परीक्षा या प्रेम में असफल होने पर आत्महत्या का प्रयत्न आदि । 2) निम्न तनाव (Hypo Stress ) वह तनाव, जिसका स्तर सामान्य से अल्प होता है और जिससे व्यक्ति की निष्क्रियता बढ़ती है, निम्न तनाव कहलाता है, जैसे अकेले जाना, कार्य निवृत्त हो जाना, एकान्त स्थान पर जाना आदि । ग अध्याय 7 : तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन ति आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के मतानुसार, तनाव (अप्रशस्त ) यदि अल्प हो जाता है, तो ऊब और अरुचि से मन क्षुब्ध (Disturb ) हो जाता है तथा तनाव यदि अधिक हो जाता है, तो शारीरिक एवं मानसिक स्थिरता भंग हो जाती है। अतः तनाव सामान्य (मध्यम) मात्रा में होना चाहिए । For Personal & Private Use Only यहाँ यह उल्लेख करना भी उचित होगा कि यदि व्यक्ति का तनाव सामान्य से अधिक अथवा अल्प रहता है, तो उसकी कार्यक्षमता भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहती । 21 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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