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________________ मत करो। ★ तनाव एक जटिल प्रक्रिया (Complex Process) है। इसमें अनेकानेक कारकों (आसेधकों/Stressors) का अपना-अपना विशिष्ट योगदान रहता है, जिसे समझ पाना इतना आसान नहीं है। ऋषिभाषित में इसीलिए कहा गया है – मनुष्य का मन बहुत गहरा है, इसे समझ पाना कठिन है। 7.3.4 तनाव के विविध प्रकार यह सत्य है कि तनाव एक विसंगति है, जिस पर विजय प्राप्त करना ही मन-प्रबन्धन का परम लक्ष्य है, परन्तु इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विद्यमान तनावों में से अच्छे-बुरे, उचित-अनुचित, आवश्यक-अनावश्यक तनावों का भेद-ज्ञान आवश्यक है। जैनआचार व्यवस्था के अनुसार, व्यक्ति को सर्वप्रथम अनावश्यक तनावों से मुक्ति पानी चाहिए और फिर आवश्यक तनाव का अल्पीकरण करते हुए अन्ततः पूर्ण तनावमुक्त दशा की प्राप्ति करनी चाहिए। इस हेतु निम्नलिखित भेद-प्रभेद विचारणीय जीवन-दशा (Life Conditions) तनावसहित (Stressful) तनावरहित (Stressfree) अप्रशस्त तनाव (Non-auspicious stress) प्रशस्त तनाव (Auspicious stress) नकारात्मक तनाव (Negative Stress) स्वीकारात्मक तनाव (Positive Stress) जैनाचार्यों के अनुसार, जीवन की दो अवस्थाएँ सम्भव हैं - तनावसहित (संसारी) एवं तनावरहित (मुक्त)। इनमें से तनावरहित अवस्था ही श्रेयस्कर है, जिसे जैनदर्शन में पूर्ण मुक्त दशा के रूप में व्याख्यायित किया गया है। स्पष्ट कहा गया है कि क्रोध, मान, माया और लोभ – ये चारों मानसिक विकार दुर्गुणों और पाप की वृद्धि करने वाले हैं, अतः अपनी भलाई चाहने वालों को इन दोषों का सर्वथा परित्याग कर देना चाहिए।' जब तक जीव मुक्त नहीं हो जाता, तब तक उसकी अवस्था तनावयुक्त ही बनी रहती है। जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 380 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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