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आचारांगसूत्र में इसीलिए कहा गया है कि 'जे मणं परिजाणइ से णिग्गंथे' अर्थात् जो अपने मन को अच्छी तरह जानता है, वही सच्चा जीवन-प्रबन्धक (निर्ग्रन्थ) है।
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अध्याय 7 : तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन
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