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________________ (1) मन का स्थान मन का स्थान कहाँ है? इस प्रश्न का उत्तर भी भारतीय दर्शनों में देने का प्रयास किया गया है । जीवन - प्रबन्धन के लिए इसे समझना जरुरी है। सभी भारतीय दर्शनों में शरीर को मन का वासस्थान माना गया है। कुछ दर्शनों में मन को सिर्फ हृदयस्थ बताया गया है, तो कुछ में मन को समूचे शरीर में व्याप्त कहा गया है। (2) मन के कार्य भारतीय दर्शनों में मन को एक महत्त्वपूर्ण साधन, माध्यम, करण या इन्द्रिय माना गया है। इसके निम्नलिखित कार्य दर्शाए गए हैं 2 1) बाह्य विषयों के ज्ञान को इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त करने वाला साधन । ' 2) अतीत, वर्त्तमान एवं अनागत काल सम्बन्धी ज्ञान का निर्णायक । 3) सुख-दुःख, प्रिय-अप्रिय, इच्छा, स्वप्न, स्मृति आदि अंतरंग अनुभूतियों को जानने का साधन । 4) काम, संकल्प, श्रद्धा, अश्रद्धा, लज्जा, भय आदि विविध संवेगों की उत्पत्ति का साधन । " 5) पूर्वजन्म की कामनाओं (वासनाओं) एवं वर्त्तमान जीवन की इच्छाओं (संस्कारों) का अस्तित्व बनाए रखने वाला तथा प्रसंग आने पर इन्हें उत्प्रेरित करने वाला साधन ।' 6) कर्मेन्द्रियों को आदेश प्रसारित करने का साधन । 7) ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों को संचालित एवं नियंत्रित करने वाला करण । 10 8) ज्ञानेन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों के मध्य समन्वय एवं सन्तुलन स्थापित करने वाला साधन ।' 9) यह भी कहा जा सकता है कि मन (अन्तःकरण) कम्प्यूटर के समान कार्य करने वाला एक यंत्र भी है। भारतीय दर्शनों में मन की संशय, निर्णय, सम्बन्ध एवं स्मरण ये चार वृत्तियाँ बताई गई हैं। इन वृत्तियों के आधार पर मन के विविध नामकरण भी किए गए हैं, जो इस प्रकार हैं11_ नामकरण वृत्ति संशयात्मक मन बुद्धि चित्त अहकार Jain Education International विवरण कम्प्यूटर किसी विषय को लेकर संकल्प-विकल्प करना, जैसे Data Collection, 'यह है' अथवा 'यह नहीं है' इत्यादि निश्चयात्मक शंकित विषय का निर्णय करना स्मरणात्मक - निर्णीत विषय का स्मरण करना यानि अनुभव की Memorizing निरन्तरता होना जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व Analyzing & Processing Final Results सम्बन्धात्मक विषय का अभिमान करना यानि उसे आत्मसात् कर Linking & Binding लेना, जैसे- 'यह मेरा है' या 'यह मैं हूँ' इत्यादि For Personal & Private Use Only 364 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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