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अध्याय 7
तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन (Stress & Mental Disorder Management)
7.1 भारतीय दर्शनों एवं जैनदर्शन में मन का स्वरूप
तनाव एवं मानसिक विकारों का आधार 'मन' है, अतः सर्वप्रथम मन का स्वरूप और उसके कार्यों को जान लेना आवश्यक है।
जीवन के तीन महत्त्वपूर्ण घटक हैं – 1) शरीर, 2) वाणी और 3) मन। शरीर से सूक्ष्म वाणी है और वाणी से सूक्ष्म है – मन। यद्यपि मन सूक्ष्म है, चर्म चक्षुओं से अदृश्य है, तथापि यह मनुष्य की अद्वितीय शक्ति है। मूलतः मन से युक्त होने के कारण ही उसे मनुष्य या मानव नाम मिला है (मननात् मनुष्यः)। अतः मन को समझे बिना, न तो जीवन की व्याख्या की जा सकती है और न ही मन का सम्यक् प्रबन्धन किया जा सकता है। 7.1.1 भारतीय दर्शनों में मन का स्वरूप
मन की अवधारणा प्रायः सभी भारतीय दर्शनों में पाई जाती है। इनमें मन की अतिसूक्ष्म से अतिव्यापक अनेक व्याख्याएँ की गई हैं, जो इस प्रकार हैं -
भारतीय दर्शनों में मन के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग किया गया है, जैसे - अन्तःकरण, अन्तरिन्द्रिय, अतीन्द्रिय, चित्त, हृदय आदि। इसे कोई काल्पनिक पदार्थ नहीं, अपितु एक वास्तविक पदार्थ माना गया है। बौद्ध-दर्शन में इसे चेतन तत्त्व माना गया है, परन्तु सांख्य-दर्शन में इसे प्रकृति के विकार के रूप में व्याख्यायित किया गया है - वैसे ही जैसे शरीर। बस, अन्तर इतना है कि शरीर स्थूल होता है, जबकि मन सूक्ष्म। इसी कारण, सांख्य आदि दर्शनों में मन को सूक्ष्म शरीर (Subtle body) भी कहा गया है।
जैनदर्शन मन को अनिन्द्रिय कहता है, उसमें मन के दो प्रकार माने गए हैं - द्रव्यमन, जो स्वरूपतः भौतिक है और सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है तथा भावमन, जो स्वरूपतः चैतसिक है एवं आत्मा और शरीर के बीच सेतु के समान कार्य करता है।
भारतीय दर्शनों में मन के सन्दर्भ में मुख्यतया जो तथ्य दर्शाए गए हैं, वे इस प्रकार हैं - 363
अध्याय 7 : तनाव एवं मानसिक विकारों का प्रबन्धन
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