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________________ में अध्ययनरत विद्यार्थी को अभी से ‘डॉक्टर' कहना भविष्य नैगमनय' है। 2) संग्रहनय195 – व्यष्टि (व्यक्ति) को गौण करके समष्टि को कथन का आधार बनाना संग्रहनय का कार्य है। आशय यह है कि इस नय में व्यक्ति की उपेक्षा करके जाति या समूह के आधार पर कथन किया जाता है। उदाहरण के लिए भारतीय गरीब हैं' ऐसा कथन व्यक्तिविशेष पर लागू न होकर सामान्यरूप से भारतीय जनसमाज को इंगित करता है। यदि कोई यह निष्कर्ष निकाले कि मुकेश अम्बानी या जमशेदजी टाटा भारतीय हैं, अतः वे भी गरीब हैं, तो यह उस श्रोता की श्रवण-कला का दोष है, क्योंकि उसने वक्ता के अभिप्राय (नय) को सम्यक् रूप से नहीं समझा। वस्तुतः, कथन सामान्य का सूचक था, किन्तु उसने व्यक्तिविशेष पर लागू कर दिया, जो दोषपूर्ण है। 3) व्यवहार नय196 – इसे व्यक्तिप्रधान दृष्टिकोण भी कहते हैं, क्योंकि यह नय समग्रता की उपेक्षा करके वैयक्तिकता पर जोर देता है। इस नय के द्वारा समष्टि के बजाय व्यष्टि के सन्दर्भ में निष्कर्ष एवं कथन किए जाते हैं। उदाहरणतः, प्रत्येक आत्मा को समान कहना यह संग्रहनय का विषय है, जबकि अवस्था के आधार पर किसी आत्मा को संसारी और किसी आत्मा को मुक्त कहना, यह व्यवहार नय का विषय है। श्रोता को चाहिए कि व्यवहार नय से किए गए कथन को संग्रह नय से समझने की भूल न करे और न ही व्यवहार नय को एकान्त से स्वीकार कर अन्य नयों का पूर्ण निषेध करे। साथ ही, व्यवहार नय कथन के शब्दार्थ पर न जाकर वक्ता की भावना या लोकपरम्परा को प्रमुखता देता है।197 उदाहरणतः, 'जाओ, पानी की टंकी खाली कर दो'। यहाँ ज्ञातव्य है कि टंकी तो सीमेंट की है, लेकिन चूंकि उसमें पानी भरा जाता है, अतः लोकव्यवहार में पानी की टंकी' कही जाती है। श्रोता को चाहिए कि वह वक्ता के अभिप्राय को महत्त्व दे, न कि शब्दों को। 4) ऋजुसूत्रनय - यह नय वर्तमान स्थितियों को ही दृष्टि में रखकर कोई कथन करता है। 198 उदाहरण के लिए भारतीय व्यापारी प्रामाणिक नहीं हैं' - यह कथन केवल वर्तमान सन्दर्भ में ही सत्य हो सकता है। इस कथन के आधार पर हम भूतकालीन या भविष्यकालीन भारतीय व्यापारियों के चरित्र का निर्धारण नहीं कर सकते।199 वस्तुतः यहाँ श्रोता के लिए आवश्यक है कि जो वाक्य जिस काल के सन्दर्भ में कहा गया है, उसके अर्थ का निश्चय भी उसी काल के सन्दर्भ में होना चाहिए। 5) शब्दनय 200 – शब्दनय यह बताता है कि शब्दों का वाच्यार्थ उनकी क्रिया, विभक्ति, काल, कारक , लिंग, वचन, उपसर्ग, विराम आदि के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकता है।201 उदाहरण के लिए, 'राम ने भेजा' और 'राम को भेजा' का वाच्यार्थ एक नहीं है, क्योंकि प्रथम वाक्य में राम वह व्यक्ति है, जो किसी को भेजता है तथा द्वितीय वाक्य में कोई दूसरा व्यक्ति राम को भेजता है। अतः श्रोता को पूरी एकाग्रता के साथ कथन का श्रवण कर क्रिया, विभक्ति, काल आदि के आधार पर कथन के अभिप्राय को समीचीन ढंग से समझना चाहिए, ताकि अर्थ का अनर्थ न हो। 349 अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन 46 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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