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________________ (8) एकाकीपन के कारण निराशापूर्ण स्थिति जिन व्यक्तियों में वाग्विवेक नहीं होता, वे अक्सर सामाजिक जीवन के सिद्धान्तों से अनभिज्ञ होते हैं अथवा उन सिद्धान्तों को जानकर भी अनदेखा कर देते हैं। फलतः वे अपने गलत वाग्व्यवहार के कारण पारस्परिक सम्बन्धों को छिन्न-भिन्न कर एकाकीपन से घुटते रहते हैं। (9) कर्मबन्धन का हेतु जैनदर्शन के अनुसार, मन, वाणी और देह - इन तीनों की प्रवृत्ति के कारण आत्मा कर्मों के बन्धन में बन्ध जाती है। अतः वाणी का दुष्प्रयोग सिर्फ ऐहलौकिक जीवन ही नहीं, अपितु पारलौकिक जीवन का भी विनाश करता है। असंयमित वाग्व्यवहार से पाप-कर्मों का संचय होता है, जिनका अशुभ-फल कालान्तर में प्राप्त होता है। जैन-पुराणों में ऐसे कई जीवन-चरित्र वर्णित हैं, जिनमें अशुभ भावों से प्रेरित असंयमित वाणी व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यक्ति को भीषण कर्मफल का भुगतान करना पड़ा। जैसे - श्रीपाल महाराजा ने पूर्वजन्म में एक मुनि को उपहासपूर्वक ‘कोढ़ी' कहकर पुकारा था, जिससे अगले जन्म में उन्हें कोढ़ी बनना पड़ा, भगवान् महावीर ने पूर्व के एक जीवन में अपने कुल का मद किया, परिणामस्वरूप अन्तिम जन्म में उन्हें सामान्य कुल में गर्भावतरण करना पड़ा इत्यादि । (10) ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) आज सम्प्रेषण-उपकरणों, जैसे - लाउड स्पीकर, टी.वी., रेडियो, मोबाईल आदि का अतिप्रयोग होने से ध्वनि प्रदूषण की समस्या तीव्र गति से बढ़ती ही जा रही है। इससे कई प्रकार की बीमारियाँ, जैसे – रक्तचाप, श्रवणदोष आदि घर कर रही हैं, साथ ही अंतरंग में उत्तेजना, रोष , चिड़चिड़ाहट एवं भय आदि से नकारात्मक भावों की भी अभिवृद्धि हो रही है। वाणी के दुरुपयोगों और तज्जन्य दुष्परिणामों की उपर्युक्त चर्चा के आधार पर कहा जा सकता है कि वाणी व्यक्ति के व्यक्तित्व का अतिसंवेदनशील पहलू है। जहाँ एक ओर यह जीवन को सजाने, सँवारने और समुन्नत बनाने में समर्थ है, वहीं दूसरी ओर जीवन को अवनति के गर्त में पहुँचाने में भी पूर्ण सक्षम है। इतिहास साक्षी है कि केवल एक अनुचित शब्द के कारण अनेक लोगों का रक्त बहा है। कभी-कभी प्रभावी वक्ता का एक शब्द भी पूरे समाज को झकझोर देता है। जो वाणी जीवन-यात्रा में प्रगति करने का साधन बनती है, वही जीवन-यात्रा में अवनति का कारण भी बन जाती है। अब यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन में अभिव्यक्ति-कौशल का विकास करें, जिससे अभिव्यक्ति के नकारात्मक प्रयोगों से बचाव और सकारात्मक प्रयोगों की अभिवृद्धि हो सके। यही वाणी-प्रबन्धन है और इसकी चर्चा जैनआचारशास्त्रों के आधार पर आगे की जा रही है। =====4 6 ===== 319 अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन 15 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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