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________________ 2) अतिश्रम एवं अतिआलस्य से बचना। 3) शुभ अनुष्ठानों, जैसे - सेवा-शुश्रूषा, देवदर्शन, देवपूजन, प्रतिक्रमण आदि से जुड़ना। 4) स्वाश्रित होकर जीने का प्रयत्न करना। 5) पराश्रितता का परित्याग कर पूर्ण स्वावलम्बी जीवन जीना। (13) विश्राम-प्रबन्धन 1) भोगोपभोग के साधनों को अल्प करना। 2) न बहुत कम और न बहुत अधिक , किन्तु आवश्यक शारीरिक/मानसिक विश्राम करना। 3) निरर्थक कार्यों (अनर्थदंड) से बचना। 4) विश्रामदायी शुभ अनुष्ठान (भक्ति, सामायिक आदि) नियमित करना। 5) स्वाध्याय, कायोत्सर्ग एवं ध्यान का निरन्तर प्रयोग करना। (14) निद्रा-प्रबन्धन 1) न बहुत कम और न बहुत अधिक , किन्तु आवश्यक (सामान्यतया छह-सात घण्टे) निद्रा लेना। 2) दिन में निद्रा नहीं लेना। 3) रात्रि में दस बजे के आसपास सोना और सुबह चार बजे के आसपास उठना। 4) सोने के पूर्व धार्मिक आराधना करना एवं ब्रह्मचर्य का अभ्यास करना। 5) सोने के पूर्व भावों को शुद्ध करना एवं पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना। (15) स्वच्छता-प्रबन्धन 1) गुटखा, पान, तम्बाकू आदि गन्दगी बढ़ाने वाले अनावश्यक पदार्थों का त्याग करना। 2) शारीरिक-शुद्धि रखना। 3) उपयोगी उपकरण, वस्तुएँ, निवास एवं कार्य-स्थल को व्यवस्थित एवं स्वच्छ रखना। 4) उचित स्थान (निरवद्य भूमि) पर अपशिष्ट पदार्थ (Waste Material) का विसर्जन करना। 5) जीव-रक्षा के लिए उचित प्रतिलेखन, प्रमार्जन आदि करते रहना। (16) श्रृंगार (साज-सज्जा)-प्रबन्धन 1) हिंसा से निर्मित प्रसाधनों का प्रयोग नहीं करना। 2) शृंगार में सादगी रखना, संस्कृति के अनुकूल वस्त्र एवं आभूषण पहनना। 3) प्रसाधनों का सीमित उपयोग करना। 4) शरीर की अशुचिता का चिन्तन करना, इससे आसक्ति तोड़ने का प्रयत्न करना और विवेकपूर्वक शृंगार का त्याग करना। 5) शृंगार का पूर्ण त्याग करना। 297 अध्याय 5 : शरीर-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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