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________________ क्र. ★ मौसम अनुकूल आहार जैनाचार्यों ने सदैव प्रकृति प्रदत्त फल-सब्जियों को ही खाद्य के रूप में स्वीकार किया है। उनके अनुसार, प्रकृति के प्रतिकूल आहार करना रोग का कारण बन सकता है। यही कारण है कि जैन- परम्परा में हरी पत्ती, भाजी, तिल्ली, सूखे मेवे आदि को शीत ऋतु में ही सेवनीय कहा गया है। चलितरस (जिसमें सड़न उत्पन्न हो रही हो ) का वर्जन भी इसी अभिप्राय से है कि व्यक्ति ऋतु अनुसार अपनी आहार व्यवस्था कर ले, खाद्य पदार्थों का अनावश्यक संग्रह न करे, अन्यथा इनसे स्वास्थ्य हानि भी हो सकती है और जीवोत्पत्ति के कारण से हिंसा भी । ★ सन्तुलित आहार जीवन के विविध कार्यों को करने के लिए शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति भोजन से होती है। भोजन के कुछ पोषक तत्त्व शरीर को निरोगी बनाए रखते हैं, तो कुछ शरीर की वृद्धि और संचालन में सहायता करते हैं । जैनाचार के अनुकूल भोजन के प्रमुख पोषक तत्त्व इस प्रकार हैं। - भोजन के घटक 1) प्रोटीन 2) वसा 3) कार्बोहाइड्रेट्स 4) विटामिन 5) खनिज लवण 6) जल 269 Jain Education International - (अ) भोजन के कुछ प्रमुख घटक (जैनाचार के आधार पर) 144 प्राप्ति के स्रोत दूध, दालें, सोयाबीन आदि घी, तेल आदि अनाज, शक्कर आदि हरी पत्तेदार सब्जी, फल आदि दूध, फल, सब्जियाँ आदि प्रकृति शारीरिक वृद्धि करना तथा कोशिकाओं की मरम्मत करना शरीर को ऊर्जा एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करना शरीर को ऊर्जा प्रदान करना कार्य रोगों से शरीर की रक्षा करना शरीर को स्वस्थ रखना तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना शारीरिक तापक्रम स्थिर रखना और उत्सर्जन, पाचन आदि क्रियाओं में सहायक होना अध्याय 5: शरीर-प्रबन्धन For Personal & Private Use Only 43 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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