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________________ 5.3 शरीर सम्बन्धी अप्रबन्धन या कुप्रबन्धन के दुष्परिणाम 63 भगवान् महावीर ने प्रबन्धन अर्थात् संयम को साधना का प्रधान तत्त्व बतलाया है। उनके अनुसार अप्रबन्धित जीवन शस्त्र के समान होता है, 2 जिसका परिणाम आसक्ति, मोह, मृत्यु तथा नरक है । 3 जिस प्रकार छिद्रों वाली नौका में बैठकर नाविक सागर पार नहीं कर सकता, उसी प्रकार से अप्रबन्धित जीवनशैली वाला मानव जीवन - लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकता जीवनशैली प्रबन्धित करनी चाहिए । अतः मानव को अपनी आज मानव की जीवनचर्या अप्रबन्धित है, जिसका मूल कारण है भोगवाद का अन्धानुकरण । इसके दुष्परिणाम भी तीव्रता से उभर रहे हैं। अनेक प्रकार के घातक रोग इस दोषपूर्ण जीवनशैली के प्रत्यक्ष परिणाम हैं, जैसे हार्ट-अटैक, कैन्सर, एड्स, हिपेटाइटिस (पीलिया), मधुमेह, उच्च - निम्न रक्तचाप, गुर्दा रोग आदि । स्थानांगसूत्र में भी निम्नलिखित अप्रबन्धित जीवनशैली को रोगोत्पत्ति का कारण ठहराया गया है ★ अत्यधिक आहार ★ मूत्र वेग को रोकना ★ अत्यधिक चलना ★ अहितकर आहार ★ प्रकृति के प्रतिकूल आहार ★ इन्द्रिय भोगों में रमण T वर्त्तमान युग में व्यक्ति अपनी जीवनशैली को सुधारने के लिए उत्सुक तो है, किन्तु संयम या प्रबन्धन की सम्यक् साधना न करने से इच्छित फल की प्राप्ति नहीं कर पाता। वह चाहता कुछ और है, सोचता कुछ और है, कहता कुछ और है एवं करता कुछ और ही है । उसकी इन्द्रिय-विषयों के प्रति आसक्ति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, परिणामतः जीवन अंसतुलित, अमर्यादित एवं अनियन्त्रित होता जा रहा है, जिससे शरीर की उचित देखभाल भी नहीं हो पा रही। इस अप्रबन्धित - जीवनशैली को निम्न कारकों के माध्यम से समझा जा सकता है (1) आहार सम्बन्धी विसंगतियाँ (2) जल सम्बन्धी विसंगतियाँ (3) प्राणवायु सम्बन्धी विसंगतियाँ ( 4 ) श्रम - विश्राम सम्बन्धी विसंगतियाँ (5) निद्रा सम्बन्धी विसंगतियाँ 5.3.1 आहार सम्बन्धी विसंगतियाँ ★ अतिजागरण ★ अतिनिद्रा ★ मल-वेग को रोकना 20 Jain Education International - व्यक्ति दिनभर में जो भी खाता-पीता है, आहार कहलाता है। आहार एवं स्वास्थ्य का घनिष्ठ सम्बन्ध है। आहार से शारीरिक विकास एवं अन्य गतिविधियों के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है । फिर भी, अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि उन्हें आहार सम्बन्धी किन-किन विसंगतियों से बचना चाहिए, परिणामतः अनेक छोटे-बड़े, साध्य - असाध्य रोग घर कर जाते हैं। ये विसंगतियाँ निम्न हैं जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व (6) स्वच्छता सम्बन्धी विसंगतियाँ (7) शृंगार (साज-सज्जा ) सम्बन्धी विसंगतियाँ (8) ब्रह्मचर्य सम्बन्धी विसंगतियाँ ( 9 ) मनोदैहिक विसंगतियाँ (10) अन्यकारक सम्बन्धी विसंगतियाँ For Personal & Private Use Only 246 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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