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________________ करती है। इसी प्रकार, शरीर में दो पार्श्व (काँख के नीचे का हिस्सा) होते हैं बायाँ एवं दायाँ बायाँ पार्श्व सुखपूर्वक तथा दायाँ पार्श्व दुःखपूर्वक अन्न पचाता है, इसीलिए जैनाचार्यों ने बाईं करवट लेकर सोने का निर्देश दिया है। 22 इनके अतिरिक्त शरीर में सात धातुएँ भी होती हैं रस, रक्त, मांस, चर्बी (मेद), हड्डी, मज्जा एवं वीर्य । इनमें भी रस से रक्त, रक्त से मांस, मांस से चर्बी, चर्बी से हड्डी, हड्डी से मज्जा और मज्जा से वीर्य बनता है एवं वीर्य से सन्तान होती है। शरीर में सात उपधातुएँ भी होती हैं वात, पित्त, कफ (श्लेष्म), सिरा (Vein), स्नायु (Nerve ), चर्म एवं जठराग्नि । इनमें से कोई भी उपधातु बिगड़ जाए, तो रोग पैदा हो जाता है। 23 यह शरीर अनेक हड्डियों एवं उनकी सन्धियों का जाल है। हड्डियों के ढाँचे पर अनेक रक्तवाहिनी शिराएँ (Veins) तथा ज्ञानवाही स्नायु होते हैं, जो मांस एवं चमड़ी से आच्छादित होते हैं | 24 शरीर में मल, मूत्र, पसीना आदि अनेक मलिन पदार्थ भी होते हैं। इनके निःसरण के लिए पुरूषों में नौ एवं स्त्रियों में ग्यारह छिद्र या द्वार होते हैं। ये नौ द्वार हैं दो कर्ण-छिद्र, दो आँख, दो नासिका - छिद्र, एक मुख, एक लिंग व एक गुदा । इन छिद्रों के अलावा भी लगभग साढ़े तीन करोड़ छोटे-छोटे रोम छिद्र इस शरीर में होते हैं। 25 — शरीर निरन्तर सड़न - गलन की प्रक्रिया से युक्त होता है, इसमें नए पुद्गलों का आगमन तथा पुराने पुद्गलों का निगमन ( झड़ना) प्रतिक्षण चलता ही रहता है। यह मानना भूल है कि शरीर स्थिर होता है, क्योंकि बचपन, यौवन, प्रौढ़ावस्था, बुढ़ापा आदि क्रम से आने वाली अवस्थाएँ हैं। 26 इस प्रकार, आध्यात्मिक होने पर भी जैनदर्शन में शरीर की सूक्ष्म एवं गहन व्याख्या की गई है, जो शरीर के सम्यक् प्रबन्धन के लिए उपयोगी दिशा प्रदान करती है। - 5.1.2 आधुनिक शरीर - विज्ञान आधुनिक शरीर - विज्ञान के अनुसार, मानव शरीर की सूक्ष्मतम इकाई कोशिका (Cell) है, यह शरीर का मूलभूत आधार है। ये कोशिकाएँ विशिष्टरूप से विकसित होकर ऊतक (Tissue) बनाती हैं । ये ऊतक एक साथ मिलकर अंग (Organ) बनाते हैं। विभिन्न अंग एक साथ मिलकर तन्त्र ( System) का निर्माण करते हैं और विभिन्न तन्त्रों का समूह ही मानव शरीर कहलाता है। इस प्रकार, मानव-शरीर अनगिनत कोशिकाओं का समूह है। 27 233 (1) शरीर की संरचना बाह्यरूप से यह शरीर एक अखण्ड इकाई के रूप में दिखाई देता है, किन्तु संरचना के आधार पर इसे निम्नलिखित छः भागों में विभाजित किया जा सकता है अध्याय 5: शरीर-प्र र-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only - 7 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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