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125 स्व-प्रबन्धन में जीवनविज्ञान (एम.ए.पुस्तक)
अ. 10, पृ. 149
103 साइंस ऑफ टाईम मैनेजमेंट, राधारमण अग्रवाल,
पृ. 113 104 वही, पृ. 114 105 हिंसाऽनृतस्तेयाऽब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् ___ - तत्त्वार्थसूत्र, 7/1 106 उत्तराध्ययनसूत्र, 9/48 107 संबुज्झह, किं न बुज्झहऽसंबोही खलु पेच्च दुल्लहा। ___णो हूवणमंति राइयो, णो सुलभं पुणरावि जीवियं ।।
- सूत्रकृतांगसूत्र, 1/2/1/1 108 दवदवस्स न गच्छेज्जा
- दशवैकालिकसूत्र, 5/1/14 109 साइंस ऑफ टाईम मैनेजमेंट, राधारमण अग्रवाल,
खं. 3. प. 67 110 असंजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं।
__ - उत्तराध्ययनसूत्र, 31/2 111 स्व-प्रबन्धन में जीवनविज्ञान (एम.ए.पुस्तक)
अ. 10, पृ. 146 112 वही, पृ. 146 113 इणमेव खणं वियाणिया।
- सूत्रकृतांगसूत्र, 1/2/3/19 114 जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वऽत्थि पलायणं ।
जो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया।।
- उत्तराध्ययनसूत्र, 14/27 115 जं कल्लं कायव्वं, णरेण अज्जेव तं वरं काउं।
मच्चू अकलुणहिअ ओ, न हु दीसइ आवयंतो वि।। ___ - बृहद्भाष्य, 4674 116 अलस अणुबद्धवेरं, सच्छंदमती पयहियव्यो।
- व्यवहारभाष्य, 249 117 मोक्खपसाहण हेतू, णाणादि तप्पसाहणो देहो।
देहट्ठा आहारो, तेण तु कालो अणुण्णातो।।
- निशीथभाष्य, 4159 118 योगशास्त्र, 1/52 119 तत्त्वार्थसूत्र, 7/16 120 जिनशासन के चमके हीरे, वरजीवनदास वाडीलाल शाह,
38, पृ. 78 121 नीतिवाक्यामृत, पृ. 53 122 स्व-प्रबन्धन में जीवनविज्ञान (एम.ए.पुस्तक)
अ. 10, पृ. 147 123 वही, पृ. 148 124 बापू के आशीर्वाद, पृ. 214 (हिन्दीसूक्ति-सन्दर्भकोश, महो.
चन्द्रप्रभसागर, पृ. 299 से उद्धृत)
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अध्याय 4: समय-प्रबन्धन
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