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________________ 4.6 जैनदृष्टि पर आधारित समय-प्रबन्धन का प्रायोगिक-पक्ष समय के सम्यक् प्रबन्धन के लिए हमें सैद्धान्तिक पक्षों को जीवन-व्यवहार में लाना होगा। कहा गया है – जान लेने मात्र से कार्य की निष्पत्ति अर्थात् सिद्धि नहीं हो पाती।2 आशय यह है कि जीवन की उतार-चढ़ाव भरी परिस्थितियों में सिद्धान्तों का उचित प्रयोग कर हम समय-प्रबन्धन की सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इस हेतु हमें निम्न कार्य करने होंगे - 4.6.1 सही उद्देश्य-निर्माण करना (Making an objective) सर्वप्रथम यह चेतना जाग्रत करनी होगी कि हमें समय-प्रबन्धन का उद्देश्य निर्धारित कर उसकी प्राप्ति करनी ही है। जैसे – व्यवसाय-प्रबन्धन, कार्यालय-प्रबन्धन, धर्म-प्रबन्धन आदि की सफलता के लिए उद्देश्य बनाकर उसकी प्राप्ति का प्रयत्न किया जाता है, वैसे ही समय-प्रबन्धन की सफलता के लिए भी सम्यक् उद्देश्य बनाकर उसके प्रति पूर्ण समर्पित एवं प्रतिबद्ध होना आवश्यक है। उत्तराध्ययनसूत्र में भगवान् महावीर ने बारम्बार कहा है – 'समयं गोयम! मा पमायए' अर्थात् हे गौतम! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। वस्तुतः यह उद्देश्य के प्रति पूर्ण संकल्पित होने की ही प्रक्रिया है। इसी लक्ष्य को चेतना के स्तर पर बारम्बार दोहराने की प्रक्रिया को ‘परावर्त्तना' और बारम्बार विशेष-विशेष चिन्तन करने की प्रक्रिया को 'अनुप्रेक्षा' कहते हैं। आधुनिक प्रबन्धन तकनीक में भी उद्देश्य-निर्धारण को प्रबन्धन का मूल आधार माना गया है। पीटर ड्रकर ने उद्देश्य पर आधारित प्रबन्धन को Management By Objective (M.B.O.) कहा है। यह प्रश्न उठता है कि समय-प्रबन्धन का उद्देश्य क्या हो? यदि जैनदृष्टि से देखें, तो समय-प्रबन्धन वस्तुतः जीवन-प्रबन्धन का अभिन्न अंग है, क्योंकि जीवन-प्रबन्धन का लक्ष्य है – जीवन के लौकिक एवं आध्यात्मिक विकास को समन्वित करते हुए जीवन को सुख–शान्ति एवं आनन्दमय बनाना और समय-प्रबन्धन ही वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से जीवन-प्रबन्धन के लक्ष्य की समयानुकूल प्राप्ति की जा सकती है। यदि समय-प्रबन्धन न हो, तो जीवन–प्रबन्धन का कोई मूल्य नहीं रह जाता। वस्तुतः, यह न्याय है कि उद्देश्य-सापेक्ष समय और समय-सापेक्ष उद्देश्य ही शोभनीय है। यदि किसी कार्य में उद्देश्य और समय की सम्यक् युति न हो, तो उस कार्य की असफलता निश्चित है। इस न्याय के आधार पर हम कह सकते हैं कि समय-प्रबन्धन का मूल प्रयोजन जीवन-प्रबन्धन की प्रक्रिया से जुड़कर उसके उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग देना है। दूसरे शब्दों में, जीवन-प्रबन्धन के उद्देश्य की समयानुकूल प्राप्ति में सहयोग प्रदान करना ही समय-प्रबन्धन का मूल उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमें तीन उप-उद्देश्यों को जीवन में अपनाना होगा - 1) उचित समय पर उचित कार्य करना। 2) न्यूनतम समय में अधिकतम लाभ प्राप्त करना। 3) वर्तमान क्षण का सर्वोत्तम सदुपयोग करना। अध्याय 4 : समय-प्रबन्धन 195 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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