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________________ 54 उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययनसार, पृ. 124-125 55 जिनशासन के चमके हीरे, वरजीवनदास वाडीलाल शाह, 56, पृ. 131 56 वही, 38, पृ. 78 57 पुष्पपराग, मुनिजयानंदविजय, 1083 58 श्रीपालचरित्र, सा. हेमप्रज्ञाश्री, पृ. 3 59 (क) समवायांगसूत्र, 12 / 78 (ख) त्रीणिछेदसूत्राणि (बृहत्कल्पसूत्र ) 4 / 26-28 60 जिनशासन के चमके हीरे, वरजीवनदास वाडीलाल शाह, 6, पृ. 9 61 जीवनविज्ञानः शिक्षा का नया आयाम, आ. महाप्रज्ञ पृ. 3-4 62 आधुनिकभारतीय शिक्षाः समस्याएँ और समाधान, रवीन्द्र अग्निहोत्री, पृ. 134 63 जैन एवं बौद्ध शिक्षादर्शन, डॉ. विजयकुमार, पू. 219 64 जीवनविज्ञानः स्वस्थ समाज रचना का संकल्प, भूमिका, युवाचार्य महाप्रज्ञ. पू. 65 जीवनविज्ञानः मूल्यपरक शिक्षा का एक अभिनव प्रयोग, गणाधिपति तुलसी, पृ. 6 68 जीवनविज्ञान और मूल्यपरक शिक्षा (एम.ए. पुस्तक), पृ. 49 67 उत्तराध्ययनसूत्र दार्शनिक अनुशीलन, सा. डॉ. विनीतप्रज्ञाश्री, पृ. 463 68 ऋषिभाषित, 17/1-2 69 जीवनविज्ञानः स्वस्थ समाज रचना का संकल्प, भूमिका, युवाचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 6 70 जैन एवं बौद्ध शिक्षादर्शन, डॉ. विजयकुमार, पू.00 71 रायपसेनीयसुत्त, घासीलालजी म. सूत्र 958. पृ. 338-341 (डॉ.सागरमलजैन अभिनन्दनग्रन्थ, पृ. 196 से उद्धृत) 72 वही, सूत्र 956 (वही, पृ. 196 से उद्धृत) 73 समवायांगसूत्र, 72 / 350 74 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका, 2, पृ. 136 (जैन एवं बौद्ध शिक्षादर्शन, डॉ. विजयकुमार, पृ. 76 से उद्धृत) 75 भारतीयसंस्कृति में जैनधर्म का योगदान, डॉ. हीरालाल जैन, पृ. 284 76 कल्पसूत्र, आनन्दसागरसूरिजी पाँचवीं बाँचना, पृ. 208-209 77 श्रीपालचरित्र, सा. हेमप्रज्ञाश्री, पृ. 3 78 जीवनविज्ञान शिक्षा का नया आयाम, : आ. महाप्रज्ञ, पृ. 4 79 कल्पसूत्र, आनन्दसागरसूरिजी आठवी दाँचना, पू. 457 66 Jain Education International 80 उत्तराध्ययनसूत्र, 29 / 25 81 दशवैकालिकसूत्र, 9/4/7 82 जैनभारती (पत्रिका), सितम्बर, 2001, पृ. 31 83 तत्त्वार्थसूत्र. पं. सुखलाल संघवी, 10/3 84 व्यक्तित्व का मनोविज्ञान अरुणसिंह, पृ. 191 85 उत्तराध्ययनसूत्र, 3/1-7 86 जीवनविज्ञानः स्वस्थ समाज रचना का संकल्प, आ. महाप्रज्ञ, पृ. 26 87 स्थानांगसूत्र 10/83 88 तत्त्वार्थसूत्र 9/25 89 भारतीयमनोविज्ञान, लक्ष्मी शुक्ला, पृ. 108 90 जीवनविज्ञान की रूपरेखा, आ. महामना, पू. 433 पृ. 895 91 उच्चतर सामान्य मनोविज्ञान, अरुणसिंह, 82 दशवैकालिकसूत्र. 8 / 38 93 उत्तराध्ययनसूत्र दार्शनिक अनुशीलन, सा.डॉ. विनीतप्रज्ञाश्री. पू. 484 94 प्रशमरति, 72 95 जीवनविज्ञान शिक्षा का नया आयाम, आ. महाप्रज्ञ, पृ. 4 96 तत्त्वार्थसूत्र, 1/3 97 श्रीमद्राजचन्द्र, पत्रांक 718, आत्मसिद्धि 13-14, पृ. 542 98 जीवनविज्ञान की रूपरेखा, आ. महाप्रज्ञ, पृ. 437 99 उत्तराध्ययनसूत्र 11/3 100 जीवनविज्ञान की रूपरेखा, आ. महाप्रज्ञ, पृ. 420 101 तत्त्वार्थसूत्र, 9/25 102 धर्मबिन्दु, 1/58 103 जैनभाषादर्शन, पृ. 80-82 104 व्यवहारभाष्य, 1828 105 तत्त्वार्थसूत्र, रामजीभाई दोशी, 1/33 106 आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत्करोति किम् समयसार, आत्मख्याति, 62 107 आदिपुराण, 2, 38 / 102-104, पृ. 248 108 उत्तराध्ययनसूत्र, 31/10 109 प.पू. गुरुदेवश्री महेन्द्रसागरजी म.सा. से चर्चा के आधार पर 110 तत्त्वार्थसूत्र 7/6 111 स्थानांगसूत्र, 1/2 112 उत्तराध्ययनसूत्र, 1/3 113 वही, 11/6-9 114 वही, 1/2 115 वही, 11 / 10-13 जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व For Personal & Private Use Only 180 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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