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इस प्रकार, जैन- विचारकों की दृष्टि में शिक्षा के विविध आयामों का सन्तुलित विकास करना आवश्यक है, अतः प्रत्येक जीवन- प्रबन्धक को सिर्फ बौद्धिक विकास अथवा शारीरिक विकास को ही महत्त्व देकर अन्य आयामों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, वरन् उपेक्षित रहे आध्यात्मिक एवं भावात्मकादि आयामों की ओर भी यथोचित ध्यान देना ही चाहिए ।
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अध्याय 3 : शिक्षा-प्रबन्धन
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