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________________ (12) आरक्षण की असंगतता - आज की शिक्षा-पद्धति में जातीय आधार पर आरक्षण दिया जा रहा है, जिसके दूरगामी परिणाम जातीय वैमनस्य की अभिवृद्धि करेंगे। इसके बजाय आर्थिक विपन्नता को आरक्षण का आधार बनाया जाता, तो यह आर्थिक विषमता दूर करने के लिए ज्यादा उचित होता। (13) सहशिक्षा और यौनशिक्षा की विसंगतियाँ – प्राच्य शिक्षासंस्थानों में जहाँ स्त्री-शिक्षा और पुरूष-शिक्षा की पृथक्-पृथक् व्यवस्था थी, वहीं आज सहशिक्षा (Co-education) की व्यवस्था है। इस पर भी, आजकल यौनशिक्षा की पहल की जा रही है। भले ही इन शिक्षाओं का उद्देश्य सकारात्मक हो, लेकिन व्यावहारिक-दृष्टि से, ये शिक्षाएँ व्यक्ति और समाज की अमर्यादित पाशविक वृत्तियों को उकसाने के लिए जिम्मेदार हैं। आज जब मर्यादा का स्तर इतना गिर चुका है कि शिक्षक और शिक्षार्थी के परस्पर पवित्र सम्बन्ध पर भी आँच आ रही है, तब इस प्रकार की शिक्षाएँ आग को हवा देने जैसी है। इस प्रकार, आज की शिक्षण-पद्धति में कई विसंगतियाँ विद्यमान हैं, जिनसे विद्यार्थी के व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पा रहा। चूँकि विद्यार्थी के बाह्य परिवेश के सभी घटक - अध्यापक, अभिभावक एवं समाज की कुछ न कुछ समस्याएँ हैं, अतः शिक्षार्थी को प्रबन्धन–प्रक्रिया अपनाने की नितान्त आवश्यकता है, जिससे वह शिक्षा रूपी जीवन-नींव की सम्यक् स्थापना कर सके। =====4.>===== 149 अध्याय 3: शिक्षा-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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