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________________ (4) विकलांग-शिक्षा की व्यवस्था यूनीसेफ (UNICEF) संस्था के अनुसार, विश्व में प्रायः दस में से एक बच्चा विकलांग है।42 विकलांग-शिक्षा के लिए राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। एक ओर चिकित्साविज्ञान के माध्यम से इनकी शारीरिक और मानसिक कमियों को आंशिक या पूर्णरुप से दूर करने का प्रयास हो रहा है, तो दूसरी ओर इन्हें व्यावहारिक जीवन के योग्य शिक्षाएँ भी दी जा रही हैं, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। सन् 1975 में विकलांगों के लिए स्थापित संस्थाओं और संगठनों की गणना का प्रयास किया गया, जिसका सार इस प्रकार है - मन्द-बुद्धि विकृत-अंग बधिर अन्ध कुल कुल संस्थाएँ संस्थाएँ संस्थाएँ संस्थाएँ संस्थाएँ संगठन 117 150 152 195 6 14 216 (यह ज्ञातव्य है कि सन् 1975 के बाद इनमें और अधिक अभिवृद्धि हुई है।) (5) पिछड़ी जाति के विकास की व्यवस्था सामाजिक दृष्टि से, सभी वर्गों और जातियों के बच्चों के लिए शिक्षा के द्वार खुल गए हैं। पिछड़ी जाति के विद्यार्थियों को विद्यासंस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण सुविधाएँ दी जा रही हैं। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए छात्रवृत्ति (Scholarship), छात्रावास (Hostel), निःशुल्क शिक्षा एवं भोजन आदि व्यवस्थाएँ भी की गई हैं। (6) अध्यापक-शिक्षा की परम्परा का विकास डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार, समाज में अध्यापक का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बौद्धिक–परम्पराएँ और तकनीकी-कौशल पहुँचाने का केंद्र है और सभ्यता के दीपक को प्रज्वलित रखने में सहायता देता है। अध्यापक समाज के भविष्य का संरक्षक है, अतः आजकल अध्यापकों के प्रशिक्षण को भी अत्यधिक महत्त्व दिया जा रहा है। इससे शिक्षक की अध्यापन क्षमता का विकास होता है। अध्यापक-शिक्षा के दो प्रकार प्रचलित हैं - (क) सेवापूर्व - इसके लिए स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम बनाए गए हैं, जो क्रमशः 'बी.एड.' और 'एम.एड.' कहलाते हैं। (ख) सेवाकालीन – सेवाकाल में भी शिक्षक की क्षमता के विकास के लिए कई विधियाँ हैं,46 जैसे - 1) अभिनव कार्यक्रम (Refresher Course) 3) आंशिक प्रशिक्षण कार्यक्रम 2) कार्यशाला (Work Shop) 4) संगोष्ठी (Seminar) 127 अध्याय 3 : शिक्षा-प्रबन्धन 13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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