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कम्प्यूटर लैब, इंटरनेट, क्रीड़ा क्षेत्र, भोजनालय (मेस), केंटीन, परिवहन आदि सुविधाएँ प्रायः उपलब्ध रहती हैं। कुछ अतिआधुनिक विद्या-संस्थाओं में वातानुकूलिततन्त्र, स्वीमिंगपूल, नाट्यगृह (Auditorium) आदि की सुविधाएँ भी दी जा रही हैं। यद्यपि यह स्थिति सर्वत्र नहीं है, फिर भी सब मिलाकर कहा जा सकता है कि विद्याशालाओं की स्थिति में असाधारण सुधार आया है।
आजकल कोचिंग इंस्टिट्यूट्स का प्रचलन भी बढ़ गया है। इनमें से सामान्य श्रेणी के इंस्टिट्यूट्स तो गली-गली में खुल गए हैं और विशेष स्तर के भी कम नहीं हैं। कुछ-कुछ शहरों, जैसे – मुम्बई, पुणे, बैंगलोर, दिल्ली, इन्दौर, कोटा, भिलाई आदि की प्रसिद्धि का एक कारण वहाँ के 'इंस्टिट्यूट्स' हैं। (2) पाठ्यसामग्री की आसान उपलब्धता
वर्तमान युग में शुद्ध और त्वरित मुद्रण की सुविधा होने से पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन आसान हो गया है, जिससे पुस्तकें एवं अन्य पाठ्यसामग्रियाँ बाजार में आसानी से उपलब्ध हो रही हैं। कई सरकारी विद्यालयों में तो निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ पुस्तक आदि का वितरण भी निःशुल्क किया जा रहा है।
इसी प्रकार, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जैसे – कम्प्यूटर, ई-मेल, इंटरनेट, इलेक्ट्रॉनिक डायरी, केल्क्युलेटर आदि से शिक्षा जगत् में क्रान्ति आ गई है। (3) स्त्री-शिक्षा की विशेष अभिवृद्धि
एक समय था जब मुगलशासन में स्त्री-शिक्षा पर प्रतिबन्ध था, लेकिन पिछले डेढ़ सौ वर्षों में इस दिशा में असाधारण विकास हुआ है। सन् 1998 में किए गए एक सर्वे के अनुसार, विद्यार्जन के योग्य उम्र वाली बालिकाओं में से विद्यालय जाने वाली छात्राओं का प्रतिशत इस प्रकार है -
ग्रामीण शहरी कुल
विद्यालय प्राथमिक
41. 8
46.4
42.7
47.6
41.5
माध्यमिक 37.
8 माध्यमिक | 29.
6
4101365
कई परीक्षाओं में छात्रों की अपेक्षा छात्राएँ आगे आ रही हैं, जो स्त्री-शिक्षा के बढ़ते हुए महत्त्व का ही परिणाम है।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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