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________________ सन्दर्भसूची 33 निशीथचूर्णी, 91 34 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/5 1 जैन एवं बौद्ध शिक्षादर्शन, डॉ.विजयकुमार, पृ. 15 35 शान्तसुधारस, 10/1 2 जैनआचार, प्रस्तावना, देवेन्द्रमुनि, पृ. 31 36 उत्तराध्ययनसूत्र, 31/2 3 भारतीयदर्शन, दत्त एवं चट्टोपाध्याय, पृ. 2 37 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/407 4 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/178 38 वही, पृ. 407-408 5 जैनआचार, प्रस्तावना, देवेन्द्रमुनि, पृ. 31 39 समणसुत्तं, 150 6 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/177 40 प.पू. गुरूदेवश्री महेन्द्रसागरजी म.सा. से चर्चा के आधार पर 7 सागरजैन विद्याभारती, डॉ.सागरमलजैन 1/163 41 वही 8 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, पृ. 1/177 42 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/405-406 9 इण्डियन फिलॉसाफी, 2, पृ. 629, (जैन, बौद्ध और गीता, डॉ. 43 सूत्रकृतांग, 1/12/11 सागरमलजैन, 1/177 से उद्धृत) 44 स्थानांगसूत्र, 3/4/434 10 दर्शनप्राभृत, 3 45 उत्तराध्ययनसूत्र, 28/2, 3, 35 11 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/179 46 स्थानांगसूत्र, 5/2/147 12 तत्त्वार्थसूत्र, 1/1 47 (क) तत्त्वार्थसूत्र, 2/8 (ख) आलापपद्धति, 9 13 आचारांगसूत्र, 1/3/2/1 48 काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तहा अनिण्हवणे। 14 उत्तराध्ययनसूत्र : दार्शनिक अनुशीलन, वंजण-अत्थ-तदुभए, अट्ठविहो नाणमायारो।। सा.डॉ.विनीतप्रज्ञाश्री, पृ. 462 - दशवैकालिकनियुक्ति, 184 15 आचारांगसूत्र, 1/1/1/3 49 जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, 4/43 16 दशवैकालिकसूत्र, 4/30 50 योगशास्त्र, 2/2 17 (क) धर्मबिन्दु, 7/3-6 51 उपदेशपद, हरिभद्रसूरि (श्रीमद्राजचंद्र, पृ. 851 से उद्धृत) (ख) देखें, आनंदघन चौबीसी, 9/4 52 जैनआचार, देवेन्द्रमुनि, पृ. 99 18 जैनआचार, देवेन्द्रमुनि, पृ. 110 53 निस्संकिय निक्कंखिय, निवितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। 19 देखें, जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 2/अ.10 उववूह थिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ठ।। 20 व्यक्तित्व का मनोविज्ञान, अरूणसिंह, पृ. 7 - उत्तराध्ययनसूत्र, 28/31 21 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/2 54 तत्त्वार्थसूत्र, रामजीभाई दोशी, 1/2 22 मूलाचार, 202 55 स्थानांगसूत्र, 2/1/109 23 आचारांगनियुक्ति, 219 56 जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, 3/617 24 मोक्षमार्गस्य नेतार, भेत्तारं कर्म-भूभृताम्। 57 योगशास्त्र, 1/47-56 ज्ञातारं विश्व-तत्त्वानां, वन्दे तद्गुणलब्धये ।। 58 उपासकदशांगसूत्र, 1/13-43 - सर्वार्थसिद्धि, पृ. 1 59 उत्तराध्ययनसूत्र, 31/11 25 दशवैकालिकसूत्र, 4/34 60 दशवैकालिकसूत्र, 4/48 26 आनन्दस्वाध्यायसंग्रह, पृ. 104 61 उत्तराध्ययनसूत्र, 31/11 27 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 1/3 62 वही, 24/2 28 उत्तराध्ययनसूत्र, 23/25, 31 63 जैनआचार, देवेन्द्रमुनि, पृ. 102 29 दशवैकालिकसूत्र, 4/33 64 (क) अणसणमूणोयरिया, भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। 30 कल्लाणमित्त संसग्गिं, सदा कुव्वेज पंडिए। काय किलेसो संलीणया, य बज्झो तवो होइ।। - ऋषिभाषितसूत्र, 33/17 - उत्तराध्ययनसूत्र, 30/8 31 दुज्जण संसग्गीए, पजहदि णियगं गुणं खु सुजणोवि। (ख) पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। सीयलभाव उदयं, जह पजहदि अग्गिजोएण।। झाणं च विउस्सग्गो, एसो अभिन्तरो तवो।। - भगवतीआराधना, 344 - वही, 30/30 32 सामायिकपाठ, अमितगति, 1 65 अभिधानचिंतामणिः, 2/214 113 अध्याय 2 : जैनदर्शन एवं जैनआचारशास्त्र में जीवन-प्रबन्धन 23 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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